________________
jܕܘܪ
वीरसेवामन्दिर-प्रन्थाला हरिसिंघ संघाहिव तणुजाएं,
कुथयास साहुहु सिरि सेहरु, रइधू कइणां वियलिय माएं।
ठविउ महापुराण, दुक्किय हरु। तेणेक्कहिं दिणि जिणहरिवंदे,
दाहिण सवणि सुवण्णहिसिद्धउ, गुरुयण लद्ध पमाणु गुरुक्कें ।
सम्मइंसणु रयण रिणबद्धउ । रिणय विरयउ भवसेणि णिवारउ,
को मुह कह पसारु वर कुंडलु, रिसह पमुह कह सुगण पियारउ ।
पहिराविउ पह जिय रविमंडलु । महापुराण वक्खारिणज्जतउ,
सोलह-भावरण-मणिमण-जडियउ, रिणसुरिणउ तेण जि गुरु मुह होतउ ।
जीवंधर-गुण-कंचरण-घडियउ । तह सम्मसरण पह धारउ,
वीयउ सवणाहरशु प्रतुल्लउ, को मुह कह पबंधु जय सारउ ।
वाम सवणि संघिउ सोहिल्लउ । इय वणिज्जतउ णिसुणेप्पिरा,
रइधू कइणा णिय विण्णाएँ, णिय मरिण अइव पमोउ बहेप्पिणु ।
पवियारिणय सत्थत्थ-पहाएँ। जिण गुण वण्णरिण महरिणरुणामो,
सुगुरु-वय-सिहिणा संजोएं, प्रखउ जाउ पोसिय बुह कामो ।
प्रसुहिं धम्म-पज्जालण-मोएं। इय जंपत्तउ जण पुरमो कई पछय जाम णिसण्णउं ?
हिंयय मूसि पक्खित्तु सुवण्णा, भारिणयय दोसु फेडंतुमणे चिंतह बहु सुय पुण्णंउ?॥३॥
लेहिणि हत्थउ तेण पसण्याइ । मह पुराण सिरि सेहरु परियउ,
धरि विज्जा सो वरिणवरु भूसिउ, को मुह कह कुंडल पुणु घडियउ ।
साहु साहु ता लोहिं मासिउ । कुथुदास दाहिण कण्णंतरि,
सुगइ णारि पिच्छिवि प्रसुरत्ती, मइ पहिराविउ तं इच्छतरि। ...
मच्चइ तस्सा लिंगणि सत्ती। जइ वि सुगुण रयणहिं सोहिल्लउ,
तेह जि भूसिउ सो इह साउ, तहि विण सोहइ सो इक्कल्लउ ।
चिर एंदउ होज्जउ दीहावउ । क्यायलहु एम भाम (स?) हिजण,
पत्ताएक्कु सुरु (सूर?) किं देइ पयक्खरण। सयतीस पमाण सलोयाहि जि पण्ािउ जीवंधर चरिउ । पउ (त) सचित्ति चितेप्पिा कइणा, कंधयाइ जीवहं णिच्च हिमोणंदउ रइधू गुणमदिउं ॥२७ भासिउ वरिणवरस्स सुहयइणा ।
इय जीमंधरजिणचरिए सोलहकारण विहाण फल भो भो कुंथयास प्रायण्णहि,
. सरिए सिरिमहाकह-रइधू-वण्णिदे सब्वेहिं सवरिण-प्रमजइ वि सम्हं तुहु किपि ण भण्णहि । णिदे सिरिमहाभब्व-कुथंयास-सवरणभूसणे जीवंषरजिरण तह विवाम कण्णहिं तउ संघमि,
विहारवण्णएं णाम तेरहमी संधी परिच्छेपो समत्तो ॥१३॥ जीवंधर गुण चरिउ पबंधमि ।
जा सुरगिर कणयंगो जा ससि सूरो महीबलं उवही। घत्ता
तज्जीवंधरचरिमो स एंदउ कुथुयासेण ॥१॥ इय सुकह पउत्तउरोह-जुमो रिणसुरिणवि पाणंदियसमरा ।
इत्याशीर्वादः वियसंति वया कुयु जि भरणइं विणय रायभरण वियत्ता॥४५०-सवणवारसि विहाणकहा (श्रवणद्वादशी विधानकथा अन्तिममागः
कर्ता-भट्टारक गुणभद्र तहो पाय कमल तत्ती जुवेण?मइ हरिसिंघ संघाहिव सुवेण। मादिभागःसोलहकारण वय फलु बहुत्तु, यो उविभक्खिउ सत्तिएणिरुतु । दिवि वाएसरि सहखाणि, अणुसरि गोयम सेणियहो वारि पत्ताजाणारि पहव पुणु कोविणरु सोलहकारण बउ करह। प
पभणेमिसवणवारसिविहाणु,मब्वहं सिष-साहणु सुह-णिहा सो तित्थयरत्तु लहेविणिरु, पच्छह सिरपुरि संचरह ॥२६॥ नोट-प्रति बहुत ही पशुख लिखी हुई है।