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जैनप्रन्थ-प्रशस्ति गंदउ जिएसासणु सुगइ-ठार
जय पउमणाह गय सयलबाह । तिल्लोय,सरूप-पयास-भाणु।
जय जिण सुपास पूरिय-जणास, दहु गुरुयण णिग्गंथ रूव,
जय रिणसिबई संखय तिमिरिरासि । जे पाणे थक्क पलंब-भूव ।
जय पुफ्फयंत पडिय सुतत्त, णंदउ चिरुराउ पयावरुद्द ।
सीयम जिऐंद जय कुरुह कंद ? अवगाहिर जि माहव-समुद्द, ।
सेवंस संस जय कुगइ-भंस, भब्बयण वि गंदहु सच्च भासि,
जय वासुपुज्ज हरि सयहि पुज्ज । सिरिचंदवाड पट्टण-रिणवासि ।
पय विमल सुट प्रये सुबुद्ध, गंदउ बुहियण सत्थत्यखाणि,
जय पह मणंत गुणगण अनंत । पयडी कयजेहिं जिरिंगदवाणि ।
जय पम्मषार भव उवहिं पार, सिरि पोमावइ पुडवार-वंसु,
जयदेव संति हय लोय-भंति । एवंदउ महिमंडल विगय-पंसु ।
जय कुंचकुंच पमुहह ममंथ, एंदउ सवि हूइ ए उदयराउ,
अब पर हयारि तच्चहं वियारि । रइधू कइ जासु पसिद्ध ताउ ।
जय मल्लि मल्ल चूरिय-तिसल्ल, गंदह सज्जण कय सबमित्ति,
मुरिण सुब्वयंक जय भव असंक। परिभमिउ णेमिदाससा कित्ति ।
जय णमि गिरीह पायड मिसीह, रिणय समए सया वरिसंतु मेह,
जय रिट्टणेमि सुह सुरह रोमि । मंगल हवं तु गिरु गेह गेह ।
जय पासपाह पारणे अथाह, तह सयल पया सुक्केण ठाउ,
जय जयहि वीर सुरगिरिव धीरु । संपज्जउ बोहि-विसुद्ध-भाउ ।
घत्ताघत्ता
एए तित्यया तिजय महिया गाएँ भोरिणहि विगय मला । संवेया दहि बुहियण विदंहि पयडिज्जंतउ गंथुइह ।
महु पणमंतह भत्तीमरि (रे) ण सुमइ पयासह ते सयला ॥१॥ एंदउ चिरु सायरु इच्छिय ससुहर कुमइ-तिमिर-भर-दलण
सरस्सई सुसामिणी सु सत्यपाय गामिणी,
जिणेस बत्त वासिणी पमाण-बाय-भासिणी। बिहु ॥११॥
सुवण्ण वण्ण देहया कईय ण ण मोहया, इय-पुण्णासवसस्थे पडिय-सुह-हेउ-परम-परमत्ये
कुमग्गजाण रोहिणी जडाण चित्त बोहिणी । सिरि पंडिय-रइधू-वष्णिए सिरि महाभव्य-संघाहिव-मि
सुमायरी महंसया हवेउ णेह संजुया, दास-अणुमण्णिए पत्त-दाण-फल-वण्णणो णाम रहमो
सुभब्व कव्वभोयरणं जणाण चित्त मोयणं । संधी परिच्छेप्रो समत्तो॥१३॥
पयत्थिऊरण पीणउंहवामि जिय वीणउ? ___४E-जीपंधरचरिउ (जीवधर चरित) . रिणगंथमग्गचारिणो सुयंग संग धारिणो । कवि रइधू
कसायचक्कहारिणो सुजम्मसिंधुतारिणो, पादिमाग:
सुषम्मरुक्ड वारिणो दुहंग कारण सारिणो। सिव सिरि रयण्यरु सम्बदयावरु भूरि गुणायक जय तिलमो।
सुगोयमाइ सूरिणो रिणरास मास दूरियो, पणविवितिस्पेसरुजितुजीमंधरुचरिउभणमितहसुहरिणलमो॥
सुताह पायकंजयं पवेवि पाव-भंजयं । जय माइदेव तियसेससेव,
पत्ता:जय भजियसामि लोयग्गगामि ।
रह गोपायलिजणधरण पउरे मंदिर-सिर-धय-दिविय-गहे। जय संभवेस हय भव-किलेस,
हब-य-बह-संकड-हद-बहे सेविय-मंडलीय-रिणवहे ॥२॥ महिएंदणक्ख जयजय पक्ख ।
सहि रिणवसंतें जरिणयाणंदें, जय सुमइ संत तिजप हु महंत,
पोखबह सुबंस-णह-चंदें।