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________________ १०.] वोरसेवामन्दिर-प्रन्धमासी पविमारिणउ जि जिएण-समय-भेउ । तहु पिय पइ-वय-वर-सलिल-गंग, परजुवईण णिच्च परम्मुह, मलणासिणि णावह सत्त भंग । दह-लक्खण धम्मेंहु णिरु सम्म । एं पर-रयणहं उप्पत्ति साणि, मतुलिय साहस सय साहारउ (सु), पइ सोममुत्ति सोमाहि हाणि । साहु सधू दाणे णं वारण? घत्ता पत्तातहि गम्भ-उवण्णा लक्खरण-पुण्णा दुण्णय-बत्ता-विमल-मणा तह पिय कुलहर-मंडण सधया सिंघो पाम गुण गया। दृस्थि (विख)य जरण-पोसण रिणय-कुल-भूसए चत्तारि जिणु बाई पुरण पाधए धम्मरया भणियं चंदोमुरिण-भत्ति-जुया ॥१ ___ यजिणचरणा ॥१॥ अज्जुण गामें तहु सुउ वुत्तउ, चारि झारण ए सुह-पय-भायर, बीरदासु पुण लक्खण-जुत्तउ । ठिय-मज्जाय चारि ए सायर। जसु जम्मणि पुरणासउसत्थो, ताहं पढमु बुहयण वक्खाणित, हत्यि चडिउ पयडिउ परमत्थो । णिव पयावरुद्द सम्मारिणउ । तोसडस्स पुरण तीयउ णंदरगु, बहु-विह-घाउ-फलिह-विद्दुम-मउ, चउविह-संघ-चित्त-मरणरंजणु । फारावेप्पिणु प्रगरिणय पडिमउ । होलिवम्मु मज्ज व गुण सोहिउ, पतिद्वाविवि सुहु भावजिउ, देवसिरि भज्जइ णिरु मोहिउ । सिरि तिस्थेसर-गोत्तु समज्जिउ । वामदेव हरपति वेणंदरण, जि गह-लग्ग सिहरु चेईहरु, तासु पसिद्धा रगया गंदण। पुणु रिणम्माविय ससिकर-पह-हरु । पुणु तुरियउ सुउ सुहिण मुच्चा, णेमिदासु णामें संघाहिउ, गिरणारहु संघाहिउ वुच्चइ । जि जिण-संघ-भार-रिणग्वाहिउ । वीरसिंघु वंदियणहि युत्तउ, तस्स पिया लच्छी बसुहायर, भज्जा कल्हो कम्मं प्रगुरत्तउ। णाम मिखो वण्णिय विणयायर । खोल्हा णंदणेण नंदंतउ, प्रवर विमणिको सुदपइव्वय, रेहइ जिरणवर-पय-वंदत्तउ। णं धम्महु सहयारि वरदय । अह पुणु तोलस्स इक्कोयर, तिणि तासु एंदण संजाया, बंधव तिणि पत्थि हायर । एं लवणंकुस जय विक्खाया। . देल्हा सावघा (य) वय सोहिल्लउ, जो इच्छिय-दाणें सुर-भूरुह, पुणु साल्हेणामेण गुणिल्लउ । जो चिंतामणिब्व पोसिय सुह। कमलसीह तीयउ जिण-भत्तउ, पो पर सुव्व कणव दाणे?उ, मिच्छा-समय परम्मुहु संतउ । रिसराम णामें सो दुर । हंसराजु णामें देल्हू सुउ, तस्स पिया गइसिरि संजाया, साल्हे पुत्त अजू जिण-पय-सुउ । रिणय-पिययम-भत्तिए परतुराया। महिपति कमलसीह कुल मंडणु, जसु जम्मागमि जिणबर-बिंबह, विणएं गुरुयणाहं पाएंदरतु । तिलउ पदिण्णउ दुरिय-णिसुभहं । घत्ताकुलह तिलउ तिलकूति दुतर, इय-परियण-जुत्तउ सोम-कलत्तउणेमिदास सुष-माप-पुउ तोखउ साहह पुरतु बीयउ सुन । एदउ जा रवि ससि एहि कर दिणणिसि जाकणयायलु महराना करिकर पिाक अवलुपुर ॥१२॥ पपा
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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