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मुयि इ भुयबल पमाणु, समरंगण प्रतुए तहु समासु । रुिवम प्रविरल गुण - मरिण - एि केउ,
साहए समुदु जयसिरि-शिवासु, जस ऊपरि परिय दह दिसासु । करवाल - हिाएं अरि-कवालु, तोडिवि घल्लिउ एवं कमल- लालु । दुपिच्छु मिच्छ रएरंगु मल्लु, रिया- कामि-मरण दिसु सल्लु । सपयावें जिय एां तर जेएए, जसु रज्जि पत्रावट्टिय सिवेए ।
जैनप्रन्थ-प्रशस्ति संग्रह
घत्ता
उब्वासिय परमंडलु रामबंद संका जसु ।
छलबल साम छहुएगी इयिछ हो कवर राउ उवमिय तसु ।। ५
तहु रज्जि महाया बहु धए छु,
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गुरु देव सत्य- विएं वियडु । जहिं संति वियक्खा मरणुव सव्व, धम्मासुरत वर गलिय-गव्व । जहिं सत्त-वस-चुय सावयाई, विसह पालिय दो -दह-वयाई । सम्म सए मए एि ) भूसियंग, चिचोन्भासिय पवया सुयंग | दारापेखए विहि णिच्च लीए, जिए -महिम - महुच्छव गिरु पवीरण । arer - गुण प्रप्पारुह पवित्त, जिए - सुत्त रसायए सवातित्त । पंचमु दुस्समु श्रइ विसम कालु रिलिवि तुरिउ पविहिउ रसालु । धम्मज्झाएँ जे कालु लिति,
वयारमंतु ग्रह - णिसु गुणंति । संसार- महाव-वडा, भीम, स्सिंक प मुह-गुर वाणीय | जहि पारीयए दिढ सील-जुत्त, दाणें पासिय rिs तिविह पत्त । तियमिसेण लच्छि अवयरय एत्थु, गयrव ण दीसह वि कावि तत्थु । घर-वर-कणयाहरण एहि,
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जिण हवण - पूय उच्छाह-चित्त, भव-तर-भोर्याह णिच्च जि विरत । गुरू- देव पाय पंकर्याह लीण, सम्मद्द सण- पालण पवीण ।
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पर पुरिस सबंधव सरिस जाहि ग्रह - णिसु पडिवण्णिय णिय मनाहि । किं वण्णमि तहि हउं पुरिस- जारि, जहि डिभवि सग वसावहारि । पवहि पर्व्वाह पोसह कुणंति, घरि घरि चच्चरि जिण गुए युति । साहम्मि य वच्छलु शिरु वहति, पर अवगुण पहि गुए कहति । एरिस सावग्रह विविहिप माणु, मीसर जिए हरि वड्डम तु ।
शिवसइ जा रइधूक व गुणालु, सुकवित्त रसायण रिहि रसालु ।
घत्ता
तास जस पसर - पूरिय राहेण संग भार-धुर-घरिय सिह । सिरि कमलसी संघाहिवेा बुहयरतु ति वित्तर ||६||
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म्हहिं किंपि धम्मु चितिज्जद्द,
तं एा करहु सक्कमि संकिज्जइ । परि दिम्मि इय चित कुज्जिह, तुम्हासे तं संपज्जइ ।
जस कित्तर तउ शिरुवद्द सई, पुर प्रखंड प्रांतु हवे सई । हउं वराउ महियलि असमत्थउ, मव- जम्मु कि रोमि रित्थउ । तं शिसुप्पिरतु पुलइय-कायें, कित्तिचंद कुमरह पुतु तायें । वियसि विजंपिउ डुंगररायें, कमलसीह वणिवर संपायें । पुतु कज्जु जंतुव मणि रुम्बई, • तं विरयहि साहु समुच्चई । जे पुखु भण्ा केवि सु-सहायए,
करहु करहु ते धम्म महायएा । कि पि संक मा किज्जइ वित्तहि,