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________________ वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमालो %3 - - पणविवि सईसरण दुग्गय-भंसा विहुरिणय-जम्म-जरा-मरण । संतिक्क एह वण महिमा स-सोह, X X सावय जगाह पयरिणय-पबोह । वीयराय-मुह-कमलहु रिणग्गय, चउसाल एयं तोरए सहार, बहु-वण्ए किय मत्थ-समग्गय । जहिं सहहि सुन्म सोहण विहार । छंदालंकारेहिं रवण्णी, पत्तासा भारइ महु होइ पसण्णी । जह जिणहरि जिणपडिम चंदकंति-विद्द,म-घडिया । संसारोवहि-पोय-समाणा, सोहंति रिगच्च बुहयण-महिय भव्वहं सिव-संपय-घडिया॥३ विगय-दोस जणि मुरिणय-पमाणा। जहिं घरि घरि सुम्मइ वर मंगलु, मइ-सुइ-माभिण-णाण-दिवायर, जहिं घरि घरि प्रचिय अंबिज्जइ गयमलु। तस-यावर-सत्ताह-दयावर । जहि घरि घरि पोसिज्जइ दुत्थिउ, जे हुय गोयम पमुह भंडारा, जहिं घरि घरि जणु दीसइ सुत्थिउ । ते पणवेप्पिणु तिहुवरण-सारा । जहिं घरि घरि पविहिय सम्माणइं, तह पुशु सुतव-ताव-तवियंगो, पत्त जि भेयहिं दिज्जहि दाणइं । भष्व-कमल-संबोह-पयंगो । जहिं घरि घरि दंसरणु गाइज्जइ, पिच्चोंभासिय पवयण-अंगो, घरि घरि संघसणु वणिज्जइ । वंदिवि सिरिजसकित्ति प्रसंगो । घरि घरि संदसणु सुमियारउ, तासु पसाए कन्वु पयासमि, घरि घरि जणु सइंसगु धारउ । प्रासि विहिउ कलि-मलु रिणण्णासमि । जहिं णारीय सुसील प्रखंडि उ, घत्ताएत्यु जि भारहि खेत्ति जणि पसिद्ध णं इंद उरु । घरि घरि सइंसशु गुण-मंडिउ । गापायलु णामेंग तं जइ वरणइ तियस्स गुरु ।।२।। भविहव-सूहव णाह-विवज्जउ, जहिं उवणाइ (उववरणाइं) रय-परिमलाई, बाल विद्ध जे तरुणि सलज्जिउ । कइ कलहाइं मुहखंडिय फलाई । तेहि जि सयलहिं दोस-अछिण्णउ, जहि सरवराइ रिणम्मल जलाई, सम्मइंसशु दिनु पडिवण्णउ। पोसिय-मराल-सारस-कुलाई । डिभ नि दसणु दंसणु घोसहिं, बाहिं दीयाउ बहु जलयराउ, चच्चरि चच्चरि बुह संतोसहिं । जल-कीलिय वर णिव रणरवराउ। घत्ताजहिं मंदिराउ बहु भोमयाई, तव-ताब-पवित्ता विगय-रया पवयणत्यमणि गण-उवहि । छुह-पह दित्तीए रहिवोमयाई । दोविह-संजम-भर-घरए-खमा रिसिवर जिएहरि वसहि जहि।।४ जहिं प्रावणाई मणि सामलाई, जिएवर-सासण-सररुह-पयंग, वित्थरिय-रयण-जुज्जलाई । भवियण-कइरव-वए-सिय-पयंग । कत्थ वि बरिण-कुल विक्किय स-वत्व, मिच्छत्त-महद्दिय-वज्जदंड, मूइव सह विक्कय सण हत्य। परिपालिय-दुद्धर-वय-प्रखंड । सिहिं तावें सुज्झइ कुणइ फेम, एिच्छम्म धम्म पइउप प्रमंद, मह तव-संतत्ता भव्वु जेम। भब्वेहि णिच्च पय-कमल-चंद । जहिं पुण्ण परिय पण्णसाल, एरिस जइवर जहिं पिच्च ठंति, पामर-परेहिं भूसिय विसाल । सम्माइ भाए कम्मइ हणंति । जिण सिव बिबुज्जल शियय सम्म, तहिं हुंगरेदु पामें परिंदु, अंधग्ग-षयावनि-ब-बम्म । तोमरकुल कमलायर-दिपिंदु ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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