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जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह
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बुहयण हं विदहें णिरु सम्माण्ड, पवयण--प्रत्थ सचित्ति पमाणइ । खेमसीहु णामेण पवित्तउ,
वीयराय-कम-कमलहिं भत्तउ । पत्तातह भज्जा सीलगुणेश जुया,सुद्ध-सलवखरण ललिय-गिरा। जाणइ वसणाहहु भत्तियरा पयडधणोरु णामेण वरा ॥५॥
एंदरपु चारि साह संजाया, दाण चार ए महि विक्खाया । पढमु ताहि परिणारि सहोयरु, विणयंकि उ णियकुलगिह-सेहरु । गिरणारहु संघाहिउ बंधरु, सहसराजु णामें गणर-सिंघुरु । पुणु बीय उ माणंदिय सज्जरा, किउ ववसाएं जेण धरणज्जणु । जाणि विबुद्धि विसालु गरेंदि (दे) थप्पिउ अप्पपास अणिदि (दें)। पहराजु जि वि णामेण पसिद्ध उ, जो जिणवयणु य मण्णइ सुद्धउ । पुरसु तीयउ गंदणु गुणमंदिर, सज्जण-जणमण-यणाएंदिरु । बृहयण-तरुवर-पोसण-कंघरु, रइ(ह)पति-गिहभर-धरण-धुरंधरु । विज्जा कोसुदत्थु भइ दुल्लहु, तरियउ सयल-बंधव-जण-वल्लहु । जे अवगमिउ सुयंगु अभंगउ, बुहचूडामणि विणय वसंगउ । होलू साहू णिहिल-गुण-भायण,
जो सेवइ रिणय-धम्म-रसायरषु । घत्ताएयहिं चरसुउहि पसाहियउ खेऊ साहू पसण्ण-मणु सह मुंजइ रंजइ परियणहं विलसह धम्म णिमोय घणु ॥६॥
प्रणहि दिणि सो पुणु गिहि यक्कउ, रिणय-मणि चितइ साहु गुरुक्कउ । पाविवि वित्तु पवर जो माउ, धम्मि ण सेवइ सो जि प्रयागउ । सो प्रप्पं प्रप्पाणउ वंचह, जो धरतु महियलि लोहें संचा।
दाणु ण देइ ण मिट्ठउ भक्खइ, रिणय-पाणहु स भूमि मिक्खिम्बइ। घिप्पइ परियहि बलि मंडइ, लेइ चोरु मह राणउ दंडइ । डहा मग्गि अहठाणु जि मुल्लइ, इह प्रत्यहु गइ कहव रण चल्लइ । इ एउ जाणे वि सहिउ णिरु किबइ, पत्तहु दाणु णिरंतरु दिबइ । सई विढत्तु रिणय सत्थे एिजइ, कि पिए पत्थलि तं पाविजह । इम चिति विजिएमंदिर पत्तउ, तहि बुह दिट्ठउ वियसिय वत्तउ । संघवीय हरसिंघउ एंदरण, मिच्छत्तावलि वल्लि-णिकंदणु । भएई साहु भो सुणि सुय-सायर, विमलचित्त गुरुभत्ति-कयायर । कि णिय कालु गहिं प्रविणोएं,
मझु वयणु प्रवहारहिं मोएं घत्ताकरिकम्वु गुणायर भव्वणिरु मेहेसर रायहु चरिउ । जि कलिमलु खिज्जइ सुहु हवइ जो धम्मामय विप्फुरिउ ॥७॥
इय णिसुणिवि जंपियउ गुणालें, कइणा विणय गुणेण रसालें। भो सहसण मणि रयणायर, पुरणपाल कुलकमल-दिवायर । जिणधम्मालंकिय णिम्मच्छर, बुहयण-जण-मरण-रंजण-कोच्छर । सयल-जीव-रक्खण सुदयावर, णिसुणहि खेऊसाहु सुहंकर । पंचम-काल-पहाउ गुरुक्कउ, धम्ममग्गि जणु प्रह-णिसु वंकउ । धरि परि दुज्जणु जणु प्रकयायरु, विरलउ दीसह कुवि सज्जण गरु । हउं पुषु छंदु विहत्ति ण जाण उं, वायरणोवहि-तरण प्रयाग। सद्दासद्दहु भेउ ण बुज्झमि, पप्रमत्ता भेउ ए मणि सुज्झमि ।