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________________ जैमग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह इय यामशाहचरिए अबुह-का-यण-सुभ-लक्सम- गायम-एवं जा कहिय सेणियस्स सुह-दायणि । णेण विरहए भन्वयश-जणमणाणदो सावप-बय-वएणणो जा बुहयण-चिंतामणिय धम्मारसहु तरंगिणि ॥२॥ णाम चउत्थो परिच्छेत्रो समतो ॥ संधि ॥ महिवीट पहाणउ गुण-वरिट पंचायती मंदिर शास्त्रभंडार दिल्ली, लिपि सं १९९२ सुरह विमण-विभउ जणइ सुह । ३३-अमरसेन चरिउ (अमरसेन चरित) वर तिरिण-साल-मंडिउ पवित्त, कवि माणिक्कराज, रचनाकाल सं० १५७६ शंदह पंडित सुर पार पत्तु ॥ आदिभाग-प्रथम पृष्ठ नहीं रुहियासु वि णामें चणिउ इछु, ए सयजवि तित्थंकर कुलहोसहिधर ते सव पणविवि पुहमिवर अरियण जगाह हिय-सल्लु कठ्ठ । पुणु मरुह सुवाणी ति-जय-पहाणी, गिय मणि धरि वि कुमा-हर जहिं सहहिं पिरंतर जिग-णिकेय, पुणु गोयमु गणहरु णमट पाणि, पंडर-सुवण्या-धय-सुह-समय। जे अक्खिड सम्मइ-जिणह वाणि । सट्ठान स-शोरण जत्य हम्म, पुणु जेण पयत्थहं भासियाई, मण सुह संदायच णं सुकम्म । भव-उवाहि-तरण-पोयण-सुहाई ॥ चळवाहम-सार दाम जत्थ, पुणु तासु अणुक्कमि मुखि पहागु, पणिवर ववहरहिं वि जहिं पयस्थ । गिय चेयणत्थ तम्मड सुजाणु । मग्गण-स-कोलाहल समत्य, हुय बहु सहस्थह-सुइ-बिहार, जहिं जब शिवसहि संपुरण प्रत्य । जिंह दुखरु सिज्जिय-पंचवाया। जहिं प्रावणम्मि थिय विवह मंग, विण्णास-कलालव-पाल्पत्त, कसवहि कसहि भम्मखंड। उद्धरिय भम्व जे सम-विसच । संतहय ताह मुशि गच्छयाह जहिं वसह महायण सुद्ध-बोह, गय-राय-दोस संजय साहु॥ मिचिय पूया-दाण-सोह। जहि वियरहि वर घड बयण जोय, जे ईरिष गंधहका-पीट पुरोण पयासिय दिन्व-भोय॥ णियमाणे परमप्पयह बीतु । यवहार चाग संपुरण सम्व, तव-तेय पियत्तणु किपट स्वीण, जहिं सत्त वसण-मय-हीण भव्व । सिरि-खेमकित्ति-पक्षी पवीण। सोवरण-बूढ मंडिय-विसेस, सिरि हेमकित्ति जि हुयट धाम, सिंगार-भार-किय-णिरविसेस ॥ तहुं पट्टवि-कुमर वि सेणु शाम। णिग्गंथु दयालउ जह-वरिष्ट, सोहग्ग-विलय जिणधम्म-सील, जिं कहिट जिणागम-भेड सुह॥ जहिं माथिथि-माण-महम्ब-जोन । तहु पट्ट-णिविट्ठउ बुह-पहागु जहिं चोर-चाड-कुसुमाल दुट्ठ, सिरिहेमचंदु मय-तिमिर-भाष । दुज्जय स-शुदखल पिसुख चिट्ठ । तं पट्टि धुरंधर वय-पवीशु, अविदीमहि कहि महि दुहिय-दी, पर पोमणंदि जो तवहिं खीणु ॥ पेमासस्स सम्व जि पवीण। तं पणविवि णियगुरु सील खाथि, जहिं रेहहि हय-पय-दलिय मग्गु, णिग्गंधु दयालउ अमिय वाशि । तंबोल-रंग-रंगिय-धरम् ॥ पुणु पतमि कह सवबाहिरम, सुहखडि जसायर स्यगाया हयण सुटणं ईदउह। मायएगहुजा सात्य-नाम ।। सत्यवाहि सोहिउ जब-ब-मदत करामह ए गुरु ॥
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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