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________________ ५-1 बीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला तहिं साहि सिकंदर सामिसालु, बार-यणह णं उप्पत्ति-खाणि, णिय पइ पालइ परियण भयालु । जा वीणा इव कलयंठि वाणि । तं रज्जि वसइ वणिवरु पहाणु, सोहग्ग-रूव-चेलणि य दिछ, दुक्खिय-जण-पोसणु गुण-णिहाणु । सिरि रामहु सीया जिह वरिष्ठ । जो अयरवाल कुल-कमल-भाणु, सहि वीर उवण्णा रयण चारि, सिंघल-कुवलयहु वि सेय-भाणु । णं णंत चउक्क सुरूव-धारि । मिच्छत्त-वसण-वासण विरतु, तम्मजिम पढमु वियसियसुवत्, जिण-सासणि गंथह पाय-भत्तु ॥ लक्खण-लक्खंकिउ बसण-चत्तु ॥ चउरिय णाम चीमा सतोसु, अतुलिय-साहसु सहसेकणेहु, जो वंसह मंडणु सुयण-पोसु । चाएण कएणु संपइहिं गेहू । तं भामिणि गुण-गण-सील-खाणि, धीरें गिरि गंभीरें सायरु, मल्हाहीण.में महुर-वाणि ॥ णं धरणीधरु णं रवि-ससि सुरु । तं णंदणु णिरुवम गुण णिवासु, णं सुरतरु पइ पोसणु सुहहरु, चउधरिय करमचंदु अरुहदासु । पं जिणधम्मु पयदु थिउ वसु वरु । जिणधम्मोवरि जें बद्धगाहु, जिं णियजसि पूरिय दाणि महिं, णिव हियह पुरयण शाहु॥ जो णिव सुह पालउ सुयणसुहि ॥ जिण-चरणोदएण वि जो पवित्, दिउराजु णामु चउधरिय सुर्हि, मायम-रस-रत्तड जासु चित्तु । जिणधम्म-धुरंधरु धम्मणिहि । उद्धरित चडम्विह-संघभारु, विण्णाण कुसमु बीयउ सुपुर, पायरिउ वि सावय-चरिउ चार ॥ जो मुणइ जिणेसर धम्मसुत्तु । पउदावंतु णं गंध-हरिथ, सुपवीणराय-वावार-कज्जि, वियरेह णिच्च जो धम्म-पंथि । गंभीरु जसायरु बहुगुणिज्ज । सम्मत्त-भयण-लंकिय सरीरु, माझू चउधरिय विसुद्ध भाइ, कणयायलु ग्व णिक्कंपु धीर । जो णिव-मणु रंजइ विविह भाइ। सुहि परियण-कहरव-वहिं इंसु, अण्णु वि तीयउ रिसिदेव भत्त, जिणवर-सहमज्में लद्ध-संसु । -गिह-मार-धुरंधरु कमल-वत्तु । तं भामिणि दिउचंदहि मियच्छि, चुगनाणामें चउधरिउ उत्तु, जिण-सुय-गुरु भत्तिय सील सुच्छि। जो करह णिच्च उवयारु तः ॥ तं जायउ दणु सील खाणि, पुणु चउघड णंदणु कुल-पयासु, चउमहणा णामें अमिय-वाणि । अवगमिय सयल-विजा-विलासु । धण-कण-कंचणु-संपुरण संतु, जिण-समयामय-रस-तित्त चित्त, पंडियह वि पटियगुण-महंतु ॥ छद्राणामें चउरिय उत्तु ।। दुहि-यण-युह-गासणु बुह कुल-सासणु जिण-सासण-ह-पुर-धवलु एचड भाइय जिणमा-राइय, दिउराजुणामु गरुवड ! विज्जा बच्छी घर रूवें गयरु मह णिसु किण विह उद्धरण४ बाणासुह विलसह कइयण पोसहणियकुल कमलज्जु पहा तं पणइणि-पणइ-णिव-देह, भरणहि दिणि जिणवर गंथदत्यु, गामें खेमाही पिय-सणेह। सम्मत्त-यण-लंकयहि पत्थु । सुर-सिंधुर-गह सहवा-विखील, गड अरुह-गेहि दिउराज साहु, परिवार पोलमा सडसील परचारिय रायरंजणपयाहु ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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