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________________ चउसेसह कम्मह करि विणासु, संपत सिद्ध-शिवास त्रासु । देवाली अमावस लेड, महो देउ बोहि देवादिंउ । देवणिकायहं श्रइम गुज्ज. आइवि विरइय किव्वा ण- पुज्ज | जिस णिसिवड जो त्रि करेइ भन्छु, पावे मोक्खु संहरिय-गब्बु | घन्ता जिण णिसिवड फलु क्खिड गुणहं कित्ति मुणो से । सिरिजसकित्ति मुणिर्दे कुत्रलय चंदे जिया गुण-भक्तिविलेसें ॥१५|| श्रमुणिय कव्वविसेस तह वि जं वीरगाह-गुराएं । चिट्ठत्तणेण रहयं तं सयलं भारही खमश्र ॥ इति निरात्रिव्रत कथा -- ( श्रामेरशास्त्र भंडार से ) ४२ रविवर कहा ( रविव्रत कथा ) भ० यशःकीर्ति आदिभाग: : आदि अंत जिणु दिवि सारद. धरेवि मणि गुरु निग्गंथ गयेत्पिणु । सुयहं श्रणुसरेवि पुच्छंत भव्त्रयणहं पासणाह तहं रचि-वउ पभणामि सावयहं जासु करंतई लब्भइ संपइ पवरा ॥ अन्तिमभाग -: पास जिर्णेद पसाएं दिवसहं सो कहइ. जैनप्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह आदिभाग पंडिय सुरजन पासहं भव्वड व लवइ । जो इहु पढइ पढावइ बिसुराइ कण्णु दइ, सो जसकित्ति पसंसिवि पावइ परम गई ॥२०॥ (दिल्ली पंचायती मन्दिर शास्त्र भंडारके गुटकेसे) २५- पासरणाह चरिउ (पार्श्वनाथ चरित) ( कवि श्रीधर ) रचनाकाल सं० ११-६ पूरिय भुणालहो पाव-पणासहो शिरुवम-गुण-मणि-गण- भरिउ । तोडिय भवपासहो पणवेवि पासहो पुण पडमि 'वासु जि चरिउ ॥ x x X [85 विरएव चंदष्पहु चरिउ चारु, चिर चरिय कम्म दुक्खाहारु । विहरतें कोडगहल-वसेण, परिहत्थिय वायुसरि रखेया । सिरि-यर बाल- कुल-संभवेण, जणी - बील्हा - भुषेण । वर विणय पणायारुण, का बुह गोल्ह-तगुरुहेण । पडिय तिहुश्रण वई गुणभरेण, मरिणय सुहि सु सिरिहरेण । जउँगा-सार सुर र हियय-हार, णं वार विलासिणि-पउर-हार डिंडीर - पिंड उप्परिय- पिल्ल, कीलिर रहं गंथोग्वड थणिल्ल । सेवाल - जाल - रोमावलिल्ल, बुहयण-मण-परिरंजण छइल्ल । भमरावलि - वेणी वलय- लच्छि, पप्फुल्ल-पोम-दल-दीहरच्छि । पवणाय सतिलावत्तणाहिं, विहिप जणवय तणु-ताय-वाहि । वर्णमय-गलमय जल घुसिण लित्त, दर फुडिय - सिप्पिड दसया-दित्ति । वियसंत सरोरुह पवर-खत्त, रणार-पवर-पिथाणु रत्त । विडलामल पुलिग यिब जामु उत्तिरी जयहिं दिट्टु तामु । हरियाणए देसे असंखगामे, गामियि जणिय अवश्य कामे । घसा परचक्क विहट्टणु सिरि-संघट्टणु, जो सुरवइया परिगणित । रि रुहिरावण विलु पवहणु, ढिल्ली यामेण जि भणिउ ॥ २ X X X जहिं असि वर-तोडिय रिठ-कवालु, राहु पसिन्दु अगवालु । दिलु वयि हम्मीरवीरु, दिया-विंद- पविययण- चीरु । दुज्जय-हिययावदिलण-सीरु, दुपाय-पीरय-रिला-समीर ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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