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________________ वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला बल-भर-कंपादिय गायराउ पुणु बीयउ विबुहाणंद-हेड, माणिणि-यण-मण-संजणिय-राड । गुरु भत्तिए संथुन अरुह-देड । तहिं कुल-गयणं गणेसिय पयंगु. विणयाहरणालंकिय-सरीरु, सम्मत्त विहूसण भूसियंगु। सोढल-णामेण सुबुद्धि धीर । गुरुभत्ति णविय तेल्लोक-णाहु, दिड अल्हण णामेण साहु । पुण तिजउ णंदणु णयणाणंदणु जगे णट्टलु णामें भणिउं । तेण वि णिज्जिय चंदप्पहासु, जिणमा योसंकिउ पुण्णालंकिउ जसु बुहेहिं गुण गणु गणिउं॥ णिसुणेवि चरिउ चंदप्पहासु। जो सुदरु बोया इंदु जेम, जपिउ सिरिहरु ते धरणत, जण-वल्लहु दुल्लहु लोय तेम । कुलबुद्धि विहवमाण सिरियवंत । जो कुल-कमलायर-रायहंसु, अणवरउ भमई जगि जाहि कित्ति, विहुणिय-चिर-विरड्य-पाव-पंसु । धवलती गिरि-सायर-धरिति । सा पुणु हवेइ सुकहत्तणेण, तित्थयरु पयहावियउ जेण, बाएण सुएण सुकित्तणेण। पढमड को भणियई सरिसु तेण । जो देह दाणु बंदीयणाहं, बत्ताजा अविरल धारहिं जणमण हारहिं दिज्जइ धणु बंदीयणह। विरएवि माणु सहरिस मणा । पर-दोस-पयासण-विहि-विउत्तु, ता जीव पिरंतरि भुषणभंतरि भमई कित्ति सुदर जणहं ।।४ जो ति-यण-यणाहरण-जुत्तु । पुत्तेण विजच्छि-समिद्धएण, जो दितु चउम्विहु दाणु भाई, णय-विणय सुसील-सिणिडएण । अहिण बंधू अवयरिड णाई। कित्तणु विहाइ धरणियलि जाम, जसु तणिय कित्ति गय दस दिसासु, सिसिरयर-सरिसु जसु ठाइ ताम | जो दितु ण जाणई सउ सहासु । सुकइत्ते पुणु जा सलिल-रासि, जसु गुण-कित्तणु कइयण कुणंति, ससि-सूर मेरु-पक्ख त-रासि । प्रणवरउ वंदियण णिरु थुति। सुकइत्तु वि पसरइ भवियणाह जो गुण-दोसहं जाणइं वियार, संसग्गे रंजिय जण-मणाह। जो परणारी-रह णिन्वियारु । इह जेजा थामें साहु मासि, जो रूव विणिज्जिय-मार-धीरू, मह हिम्मलयर-गुण-यण-रासि । परिवा -बयण-धुर-धरण-धीर। सिरि-भयरवाल-कुल-कमल-मित्तु, सुह-धम्म-कम्म-पवियएण-वितु । सोमहु उवरोहें बिहय विरोहें णट्टलसाहु गुणोह-गिहि । मेमडिय णाम हो जाय भज्ज, सीमाहरणालंकिय सलज्ज । दीसह जाएप्पिणु पणउ करेप्पिणु उप्पाइय भव्वयणदिहि ॥ बंधव-जण-मय-संजणिय-सोक्ख, सं सुणिवि पयंपिड सिरिहरेण, हंसीव उहय-सुविसुद्ध पक्ख । जिण-कम्ब-करण-विहियापरेण । तहो पढम पुत्तु जण वयण राम, सब्बड जं जंपिड पुरउ मज्नु, हुड प्रारक्खि तसजीव गामु । पद सम्भावें बुह मइ असज्छु। कामिणि-माणस-विदवण-कामु, परसंति एत्यु विबुहहं विवक्ख । राहट सम्बस्य परिणाम। बहु कवड-कूट-पोसिय सवालु।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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