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________________ जैनमन्थ- प्रशस्ति संग्रह सिर कट्टसंघ माहुरहा गाच्छ, क पुक्खर गए मुणिवरई विलछि । संजायड वोर जिलुक मे या, परिवाडिए जइवर हियए । सिर देव से वह विमलसेणु, तह धम्मसेगु पुणु भावसेणु । तो पट्टि उण् सहसकित्ति, अवश्य भमिय जए जासु किति । तवा मुणि गुणकित्ति यामु तव ते जासु सरीरु खामु । तो श्रायरियासिय दो-राउ । ते गाय बुद्धिए विरयउ गंधु, भवियहं दाविय-सु-मग्ग-पंथु । बंध जसकित्ति जाउ (प्रति भामेर और देहली पंचायती मंदिर शास्त्रभंडारसे, सं० १६१२, सं० १६६१ ) २२ हरिवंशपुराण ( - भ० यशः कीर्ति ) रचनाकाल सं० १५०० आदिभागः पयडिय जयहंसो कुणय विहंस हो भविय क्रमल-सरहंमहो । पण विवि जिगहंसो मुणिया हो कह पडमि हरिवंसहो ॥ जय विसह विसंकिय विस- पयास, जय अजिय-प्रजिय हय-कम्मपास । जय संभव भव तरुवर कुठार, जय अभिनंदण परिसेसिय कुणारि । जय सुम सुम पडिय-पय थ, जय परमप्पह या सिय-कुतित्थ । जय जय सुपास हय-कम्मपास, जय चंदप्पe ससि भास-भाय । जय सुविधि सुविहि-पडण- पवीय, जय सीयल जिया वाणी-पवीण । *प्रशस्तिका यह भाग थामेर प्रतिमें नहीं है, प्रतिलेखकोंकी कृपा से छूट गया जान पड़ता है। किन्तु पंचायती मंदिर देवलो के शास्त्र भंडारकी प्रतिमें मौजूद है, उसी पर से यहां दिया गया है। जय सेय सेय क्रिय- विगय-सय, जय वासुपुज्ज भव-जल हि सेय । जय त्रिमल विमल गुण-गया- महंत, जय संत दंत जियावर प्रांत । जय धम्म धम्म विस हरिय ताव, जय संति समिय-संसार-भाव । जय कुंथु सुरवि-हुम-पाणि, जय अरिजिण चक्की सयल-णायि । जय मल्लि हिय- तिल्लोक-मल्ल, जय मुणिसुन्वय चूरिय-ति-सल्ल | जय यामि जिण विस-रह- चक्करोमि, जय जहिय राय रायमह रोमि । जय पास असुर - णम्महिय-मायण, जय वीर विद्दासिय-याय- पमाण । [ ४१ वत्ता पुणु विगय-सरीर गय-भवतीर तीस छह गुण सूरिवरा । उवज्झाय सुसाहू हुय सिवलाहू पणविवि पयडमि कह पवरा ॥१ पुष्व पुराण विस्थरु, काल- पहावें भवियहं दुत्तरु । अयरवाल-कुल-कमल-दिशेसरु, दिउचंदु साहु भविय जण-मयहरु | तासु भज्ज बालुहिइ भणिज्जद्द, दाय गुणहिं लोएहि थुणिज्जइ । सच्च-सील - हरयहिं सोहिय, भारु मुणिवि कंचयाहिं ण मोहिय । ताहि पुतु विणा वियाणड, दिउढा णामधे बहु जागउ । तो उवरोह मई यहु पारद उ सुहं भविया प्रत्थ-विसुद्ध उ । जासु सुत महारउ-खिज्जइ, सग्गपवग्गहं सुह-संपज्जइ । अ महंतु पिक्खवि जणु संकिउ, ता हरिबंसु महंमि श्रहिंकिउ । सद्द - प्रत्य-संबंध-फुरंत, जिरासेहो सुत्तहो यहु पय डिउ । त सी वि गुणभड़ वि मुबिंडु,
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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