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________________ ו כט वीरसेनामनिर-माला . बाईहिं कुंभदारण-मयंदु'। सज्जण-दुज्जण-भउ अवगरिणवि, ते णिय-णिय सहाव-रय दोरिणवि | कहुयउ-णिबु-महुरु इंगाली, अंबिलु बीयपूर-चिं वाली। सिंह सज्जण सुसहावें वच्छलु, दुज्जणु दुत्थु गहइ कवियण छलु । लेउ दोसु सो मई मोकल्लिर, जह पिक्खइ ता अच्छउ सलिलउ । अन्तिमभागः इहु हरिवंसु सस्थु मह अक्खिर, कुरुवंसहो समेउ एउ रक्खिड । पढमहि पयडिउ वीर-जिणेदे, सेणियरायहो कुवलय-चंदें। गोयमेण पुणु किय सोहम्में, जंबूसामि विण्हु सणामें। दिमित्त अवरज्जिय गाहें, गोबद्धणेण सु भद्दयबाहें। एम परंपराए अणुलग्गउ, पाइरियहं मुहाउ भावग्गउ । सुणि संखेव सुत्तु अवहारिउ, मुणि जसकित्ति महिहि विस्थारउ । पद्धडिया छंदें सुमणोहरू, भवियण-जण-मण-सवण-सुहंकह। करि वि पुरणु भवियह वक्खाणित, दिदु मिच्छत्त, मोह-अवमाणिउ । जो इउ चरिउ वि पढह पढावा, वक्खाणेप्पिणु भवियह दावा । पुणु पुणु सहहेइ समभावे, सो मुच्चइ पुवक्किय-पावें। जो मायरइ ति-सुद्धि करेमिण, सो सिउ लहइ कम्म छेदेप्पिणु । जोणु एम चित्तु णिसुणेसह सग्गु-मोक्खु सो सिग्घु खहेसह । १ यह पंक्ति मामेर प्रतिमें नहीं है, किन्तु पंचायती मंदिर देवी भंडारकी प्रतिमें पाई जाती है। एउ पुराणु भषियहं भासासह, पायु-बुद्धि-बलु-रिद्धि पयासह । वहरिउ मित्तत्तणु दरिसावइ, रज्जस्थिउ विरज्जु संपावह । इट्ट समागमु लाह सुहाइवि, देवदिति बरु मच्छरु मुचिवि । गह साणुग्गह सयल पयहि, मिच्छाभाव खणड तुट्टहिं । भावह सव्व जाहिं खम भावें, सुह-विलास घरि होहि सदावें । पुत्त-कलित्तत्थियहं सुपुत्तइं, सन्गस्थियहं अणु हुज्जइ । जो जं इच्छह सोतं पावइ, देसंतरि गड णिय घरि श्रावइ । भवियण संबोहणहं णिमित्ते, एउ गथु किउ हिम्मल-चित्त। गाउ कवित्त कित्तहें धणलोहें, गड कासुवरि पवडिय मोहें। इंदड रहिएउ हुड संपुण्णउ, रज्जे जलालखान कय उराउ । कम्मक्खय णिमित्त हिरवेक्खें, विरहउ केवल धम्मह पक्खें। अस्थ-विरुदधु जंजि इह साहिउ, तं सुयदेवि खमड अवराहउ । यंदउ परवडणाय सपत्तड, सहता उवणिय पय पालतउ । यंदड जिणवर सासणु बहुगुण, शंदउ मुणिगणु तह सावय जणु । कालि कालि कालिविणि परिसर, पच्चउ कामिणि गोमिणि विलसत । पसरट मंगलु बज्जड महलु, मंदर दिउढासाहु गुणग्गलु । जावहि चंदु सूरु तारायण, यंदड ताम गंथु रंजिय जणु । विक्कमरायहो ववगय कामई, महि इंदिय दुसुण्ण अंकालई। भादवि सिय एपारसि गुरुदिणे, हुए परिपुण्यर उगतहिं इणे ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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