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________________ 201 भार मुवि कंचाहि ण मोहिय । वासु तु पह जाणिज्जद्द, चाएं तब गहिं णिज्जइ । atra सारंगु वि पि भक्त, कउला त वहिं चत । घता पल्हण णंदणु गुण णिलउ गोल्हण माय-पियर-मण-रंजणु । वील्हा साहु व सुउ लखा यामु जण मग आणंदणु॥३ दिउ राजही य भज्जहि समेउ, की हुड संताप जोड । गंदणु डूंगरु तह उधरणक्खु, हंसराज तयउ सुड कमल-वक्खु । द सास सम्मइाहें, यद भवियण कय उच्छा है । दरव पथ पातठ, दउ उदय-धम्मुवि रिसिहंकिउ । यद मुणिगणतड पालंतर, दुविधम् भविया कहंतउ । दाण- पूय त्रय-विद्दि- पालंड, यदि सात्रय गुण रय- चत्तड । कालं विशिय णिन् परिसक्कड, कासवि धणुक देति या थक्कउ । चज्जड मंदलु गिज्जर मंगलु, यच्चणारीय रहसें कलु : द वील्हा पुत्त गुणवंतउ, एक्कहिं दिणि चिंतित हेमराय, जिणधम्म हीणु दिणु अहलु जाय । 1 गिसुज्जि चिर पुरिसहं चरित, हरि-नेमिनाह - पंडवहं वित्तु । ता होइ मज्म जम्मु वि सलग्घु, यासह - चिर संचिउ पाउ- सिग्धु । इय चितिथि जिय-मंदिरहि पत्त जस मुखि पण विवि श्रक्खि सचित्त । हेमराउ-पि पुत्त सतउ । - विरुद्ध बुद्दहिं सोहिन्वउ, सोउं इच्छमि पंडवचरितु, पयहि सामिय जं जेम वित्तु । धम्माल न विउ । विक्कमराय हो वय कालए, महि- सायर-गह- रिसि अंकालए । विवरी सम्बु जणु वज्जरेह, परवावयि दुक्खहो उ डरेह । कत्तिय सिय अट्ठमि वुह वासर, हुड परिपुरण, पद्म नंदीसर । यहु मही- चंदु-सूरु-तारायणु, सुर- गिरि उवहि ताउ सुद्द भावशु । तं सुणिवि जंपित मुविरिंदु, चंग पुच्छि बुहयण चंदु । पंडव-चरित इ-गणु जइवि, तुव उवरोहें हउ कमि तहवि । जाता गंद कलिलु हरंतउ, भविय - जयहिं विस्थारिज्जंतड । घता - इय चविह संघ विहुणिय विश्व तो तो वय गुण-गण-महंतु, पारंमि सत्यहं फुरंतु । सज्जण दुज्जण भउ परिहरेवि, यि यि सहाव र वि दोषि । घन्ता-सज्जा वि सहावु अकुडिल भावु पर दोस-पया सिरु अवगुण - भासिरु ससि-मेहुब उवयार- मई | मेवायन्तर प्रन्थमाल गुण कति सिस्स मुणि- जसकित्ति विरहए साधु- वीरुद्दा- पुत्तरा मंति- हेमराज यामं किए बु. रुवंस-गंगेयड- थितिः वय याणेया। पढमो सग्गो ॥ प्रथमसंधिः ॥ १ ॥ चरमभाग : दुज्जणु सप्पु व कुढिल गई ॥४॥ X x किण्यासिय भव-जर-मरणु । जसकिन्ति पयास अख लिय- सासखु यह संति सयंभु जिणु ॥ २३ ॥ इय पंडव-पुराणे सवल- मद्य-मय-समय- सुहयरे सिरिगुण कित्ति - सिस्स मुणि- जस कि सि-विरइए साधु -वील्हा- पुस हेमराज - ग्रामंकिए मियाद-मुनिहर-भीमान्य-निम्वाय गवणं, नकुल सहदेव सन्ध सिद्धि बलदद्द - पंचम सग्ग गमण - पयासयो याम चडतीसमो इमो सम्भो समतो ''x इय पंडवपुराणे सयल-जय-मय-समय- सुहयरे सिरि- ॥ संधि ३४॥
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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