________________
३i
वीरसेवामन्दिर-प्रन्थमाला
विजउ यामु पंचमु सुह-बद्णु, बहउ अचलु रिद्धि-साकंदणु । सत्तमु णामु पसिद्ध धारणु, पुणु भट्टमउ तणुभउ पूरणु। सुड अहिचंदु णवमु पुण जाणहु, दहमड सुड वसुएवड मारा। एयह बहुअंकोऽतिमदोबर, बावरण णिजिप अमरच्छर । समुद विजअ सूरीपुरि थपिउ, चंदवाडु वसुएवहो अप्पिउ। तहो सुट रोहिणेउ अरि-गंजणु, देव-शंदणु अणु जगहणु। तहो संताण कोडि-कुल-लक्खइं, संजाया केवलि-पच्चक्खई। पुणु संभरि परिंद महि भुजिय, जाथव- सुब्बभते रंजिय। प्रसवंतु चहुवाण पुहइ पहु, तहु मंतिउ अदुवंसिउ जसरहु । पहुगण पत्तिहु अउ धरणीयति, भासानुरि सुरि-पय-पंकय-अलि । साहु णाम गोकणु मंती तहु, जिणवर-चरणंभोरुह-महुलिहु । हुउ संभरिणरिंद महिवालउ, करणदवु-णाम-पय-पानउ । सोमदेउ बहो मंति सहोयर,
सयल-कलाकर ससहरु। पत्ता-पुणु सारंगु णरिंदु अभवचंदु तहो णंदणु ।
तहो सुप हुड जयचंदु रामचंदु णामें पुणु ॥ शिव-सागरनजि-समयंकित, वासाहरु मंतिउ गीसंकिउ। शिय-पान-भार-दिठ-कंधक, विवुह-वंदि तह-पोसण-कंधा । एक्कु जि परमप्पाड जो मावा, वे बवहार सुदणय भावह। जो ति-काल रयणतड बंचा
मनोय-ल कह-विय मुग्छ। जो परमेटि-पंच-धाराहह, जो चंग-संव-महि साहा।
जो मिच्छत्त पंच अवगरणई, छक्कम्महि जो दिणि दिणि गम्मई। जो सत्संगु-
रसु णिहालह, सत्त-तरच-सहा रसाला। दायास्हु-गुण-संततमत्तल, सत बसखें जो कहिवि ण रत्त। भट्ट मूलगुण-पालण-तप्पर, सदसण अट्ठ'ग रयणाधरु। अष्ट-सिद्ध-गुण-गण-सम्माणई, अट्टदब्वपुज्जिय जिण-धरण। एष-विह-पुण्ण-पत्त दाणायर, शव-पयस्य परिरक्खा -णायरु। एव-रस-चरिउ सुण वक्खाणई, दह-जवण-म्महि रइ-माणई। एवारह अंगई मणि इच्छा, एयात्रह-पडिमाड-णियस्छ। बारह-सावय-वय-परिपालाइ, रह-विहि चरितु सुणहाबाद। चउदह-कुलपरक्खमुवपस्सइ, . चउदह-विह-पुरुबाह-मणु-वालाइ । पउदह-मम्मण-वित्थरोबर,
चम्पह पुरिस सत्तण उगोवह । पत्तातहो बंधउ रयणसी मणि भज्जयमेरु सुपसिउ जिणविंव-पाटनएवि पुणु जिलावर-मोतु शिबउ ॥२॥
वासदर पिययम वे परिणि, पतिव-पोसण णं कुछ धरणि । वे पक्तुस्मता पर यमराखिया, सोल-तहहिं बेक्ति रसाक्षिय। पेमकिय-कुल-सरणं पोमिणि, सुयण-सिहंडणि णं जलहर-कुषि । पइ-का-सीत-सविन-मंदाइणि, दुक्खिय-जय-जय-सुक्दापणि । उदयसिरी होमा विक्षय- परविह-यहो कम्पबिहे इन। उधर-सपि-सुव-रक्य-समुन्धव, संजाया कुख-हरण-मबमव। पाम-पुजु जयपालु गुणपड,