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________________ जैनप्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह वाएसरि-कोला-सरयवास, घर पउमचरिउ किड सु-कइसेदु, हुम भासि महाकई मुणि-पयास । इस अवर जायवर बलयबेहु । सुभ-पषण-दुविय-कुमय-रेणु, पत्ता-चउमुह दोणु सयभुकइ पुप्फतु पुणु वीरु भणु कह-चावहि-सिरि धीरसेणु । ते गाण-दुमणि-उज्जोय-कर हर दोवोषमुहीणु-गुण ॥८॥ महि-मंडलि वरिण विबुहवंदि, तं णिसुणिवि वासाहरु जंपह, वापरण-कारि सिरि-देवणंदि । किंतुहं बुद्ध चिताउलु संपह। जइणेद यामु जायण-दुलखु, जह मयंक किरणहिं धवनइ भुषि, किड जेण पसिद्ध स-वायसन्खु । तो खजोड ण थंडहणिय-कृषि । सम्मत्तारू बुसु रायभन्यु, जा खपराड गयणे गमु सजाइ, दसण-पमाणु बरु रयड कम्यु। वो सिहहि किंणिय-कमु वजह । सिरि बज्जसूरि गणि गुण-णिहाणु, जह कप्पतरूपमिय फल कप्पह, वि.यड मह छहसण-पमाणु । तो किं तरु लज्जा णिय संपह। महासेण महामई विड समहिल, जसु जेसिड मह-पसरु पबहछ, पण याम सुलोयणचरिउ कहिउ । लो तेत्तिउ धरशिपलें पयहह । रविसेणे पउमचरित्तु वुत्तु, इय णिसुणिवि संघाहिव बुत्तर, जिणसेणें हरिवंसु वि पवित्त । करणा धणवालेण पउत्त। xxx मुणि जडिलि जडत्त-णिवारणत्थु, इयसिरि-बाहुबलि-देव-चरिए सुहडदेव-तणय-गृह धणयं वरंगुचरिउ खंडणु पयत्थु । बाल-विरइए, महाभम्व-वासद्धर-णामंकिए सेणिपरायदियरसेणे कंदप्पचरिउ, समवसरण-समागमो वण्णणो याम पढमो परियो वित्थरिय महिहिणव-रसहभरिड। समत्तो ॥ संधिः॥ जिण-पासचरिउ भइसयवसेण, अन्तिमो भागःविरयड मुणिपुगव-पउमसेण । xx अमियाराहण विरहय विचित्र, जंबुदीव-भरह-वर-संतरि, गणि अंबसेण भव-गोस-चत्त । गिरि-सरि-सीमाराम-णिस्तरि । चंदप्पहचरिउ मणोहिराम, अंतरवेइ ममि धयारिदउ, मुणि विण्हुसेण किउ धम्म-धामु । व कावि-विसउ सु-पसिद्धछ । धणयत्तचरिउ चउचग्गलारू, वीर-खाणि उप्पत्ति पवित्तर, भवरेहि विहिड मायापयारु । सूरीपुरु जण परिपालंतड । मुणि सीहणंदि सहस्थ वासु, सूरसेणु णरवह सहोणंदा, अणुपेहा-कय-संकप्प-णासु। अंधय-विदि-राउ रिउ-महणु। एवयारणेहु णरदेव वुत्, वहो पहवय पिय-पाण-पियारी, का असग विहिट वीरहो चरित्तु । णाम सुभद्दा देवि भडारी। सिरि-सिद्धसेण पवयण विणोड, दस-दसार तहिं संदण जाया, जिएसेणें विरहर पारिसेनु (पारिसोड) वोर-वित्ति तिहुअण-विक्खाया। गोविंदकह दसण-कुमार, : सायर-विजउ पढमु उविणीपर, कह-यय-पमुद्दो लड-पारु । पुण अक्खोडु णाम हुम बीपठ । जयभवलु सिद्ध-गुण-मुबिड तेड, तइपड अमियास सिरिवल्लहु, सुप सालिहत्थु का जीव देउ। पुणु हिमवंतु तुरिउ जाणहु दुल्लहु ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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