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________________ जैनप्रन्थ- प्रशस्तिसंग्रह पट्टाहिबार संपुरणगत रए कंतु (कण्णा) दाणिणा सुद्ध'कत्ता, जहासरण भव्वस्स सम्मत्त-वित्ती वियलिय सरोय- संकास-वत्तु । आयुक्खए सो सिरि रयणवालु, गड सग्गालए गुण-गण-विसालु । asो पच्छर हुड सिवएव साहु, पिउ-पट्टि बटुड गलिय-गाडु । अहमल्ल - राय-कर-विहिय-तिलड, महया महिउ गुण-गरुव- लिउ । घतातासु सुक्खा विहिय कुलक्कम अणुगामिण तह जणमडिया तहि हुव वे गंदणण यथायंदण हरिदेउ जि दिउराउ हिया || X X X X अन्तिम भाग सिरि लंबकंचु-कुल-कुमुय - चंदु, करुणावल्ली-वय-धवा-कंदु । जस-पसर - परिय-बोम-खंड, यहि विमा कुलिस दंड । घेता अवराह-बल हिय-पलय पवणु, भव्वयण वयण - सिरि-सयया-तवणु । सो साहु पट्टि आणि सेड, सिदेउ साहु कुल-स-केउ । जो करड्डु पुब्वुत्तड पुराण पडत्तड महिं मंडल विक्खाय हव मल्ल-परिदं मासा ददु मंतत्तण भाय ॥८॥ पिया तस्य संल्लक्खणा लक्खणड्ढा, गुरूयां पर भक्ति काउं विषढां । स- भतार - पायारविंदाणुगामी, घरारंभ-वावार संपुराण-कामी । सुहायार चारित- चीरंक- जुत्ता, सुया गंधोदयं पवित्ता । उम्मूलिय-मिच्छन्तावपीड, जिया वरच्या विरयण - विणी । H दंसण-र्माण भूसण-भूसियंगु, तज्जिय-पर- सोमं तिमि -पसंगु । पवयण- विहाण पडण-समोसु, णिरुवम-गुण-गण-माणिकक-कोसु । सपर्याड - परपयडिया श्रणिंदु, धण-दाण-धविय-वंदिया- बिंदु | संसाराड - परिभ्रमण भीह, जिया कण्वामय-पोसिय-सरोरु । स- पालाय कासार सारा मरानी, किवा दाण-संतोलिया बंदिणाली । पसण्या सुवाया प्रचंचेल-चित्ता, राम (रमा) राम - रम्मा मए वाल णित्ता (९) । खखागं मुंहभोथ-संपुष्ण-जुहा, पुरग्गो महासाह सोढस्स सुण्डा । गुरु-देव-पाय- पुंडरिय-मन्सु, विणया लंकिय-त्रय - सील- जुसु । दया- वल्लरी-मेह मुक्कं बुधारा, सत्तत्तणे सुद्ध सोभावबारा । जहां चंद्रचूडागामी भवाणी, जहा सब्वयेहिं सवंग-वाणी । महसह लक्खा तहु पाणणा हु, पुर- परिहायार- पलंब - बाहु । कहडु वणिव जण -सुप्पसिद्ध, अहमल्ल-राय-महमति रिद्ध । तो पणय वसेा वियक्सो, महमइया कहया लक्खणेण । हा गोत- हारियो रंभ रामा, रंगा' दाणवारिस संपुण्यकामा । जहा रोहिणी श्रोसहीसस्स सराया, महढी सपुण्णस्स सररस रयणा । हिंसयणस्म साहा जहारूवमीसा (१) । जहां जायाई कोसलेसस्स सारा, कुणीयस्स मंदाणी तेयतारा । साहुलहो घरिणी जइता - सुए, सुकइतयगुण-विज्जाजुएय । जायंस- कुल-गयण - दिवायरेय, अणसंजमीहिं बिहियायस्य । जंहा सूरियो मुन्तिवेई मणीसा इह अणुवय- रयण- पई कम्बु, विरयड ससन्ति परिहरि वि गब्बु । [३१
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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