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वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला
सुप्पसण्ण-राड घरह तवा, भयुकवणु दुवार-कवाड देह । अवमिय वय लिया चातुरंग, धण-कण-कंचण-संपुण्ण चंग। घर समुह एंत पेच्छि वि सवार, भणु कवणुपण झपड दुवार। चितामणि-हाडप-निवह-जडिड, पजहा कवणु सई हत्य-वडिड। घर-रग्गुप्पण्णड कप्परुक्खु, जले कवणु न लिंचा जणिय-सुक्खु । सयमेव पत्त वह कामघेणु, पज्जहइ कवणु कय-सोखसेणु । चारण-मुणि तेए जित्त-भवा, गय गाउ पत्त किरकोण बबद। पेउस-पिंड करे पत्तु भन्बु, को मुग्रह निवे (इय)-जीवियन्तु । मह विज्जक्खर-गुण-मणि-णिहाणु, पवयण-वयणामब-पय-पहाणु । घर-धम्मिय-गर-मण बो] गत्यु, वर-काणा विरइउ परमु सत्थु । एमेव लव-मह-पुण्ण-भवणु, अवगाह यह धीमंतु कवणु।
तहा अभयबालु तणुरुहव हूड, बणि-पकिय-मालयन-कट गरवह-समज्ज-सर रायहंसु, महमंत-धविय-चरहाण-वंसु । सो अभयवाल-णग्णाहनज्ज, सुपहाणु राय-बावार-कज्ज । जिय-भवणु करायड तेससेड, केयावलि-झपिय-तरणि-तेउ। कूडावीडग्गाइणा वोमु-कलाहोय, कलस-कलवित्ति-सोमु। चड सालउ तोरणु सिरि जणंतु, पर-मंडव-किंकिण-गण-मातु । देहरूहु तासु सिरि साहु सोनु, जाहड-गरिंद-सहमंत-पोतु ।
इह महियले सो घण्ट , पुण्ण-पउण्या जसु थामें सुपसाहमि । चितड लक्षण-कणा, सोहण-महणा कम्व-श्यणु णिवाहमि ॥६॥ इह चंदुवाडु जमुण-तरत्यु, इंसिय-विसेस गुण-विविह-वस्य । पड हा-सह-धर-सिरि-समिड, घउ बरवासिय-जण-रिद्धि-रिन् । भूवालु तत्थ सिहि मरहवालु, बिय-देस-गाम-पर-रखवालु वहि-बंधकंधु-कुलमायण-भाणु, हलणु पुरवह सम्बह पहाणु । नरनाह-महा-संग्णु जबिट्ट, जिय-सासर-परिवह पुण्य-सिद्ध ।
संभूयउ तहो रायहो, बच्छि सहायहो पढम जण मणाणंदणु । सिरि बल्लालु गरेसर, वें जिय-सरु सुद्धासउ महणंदण ॥
जो साहु सोढु तहि पुर-पहाणु, जण-मण-पोसणु गुण-मणि-णिहाणु । तहो पढम पुत्त सिरि रयणवालु, बीपड कएहडु महिंदु-भालु । सो सुपसिदउ मल्हा-तराउ, तस्साणु मणा जिउ सुबरूड (१)। उद्धरिय जिणालय-धम्म-मार, जिणसासण-परिणय-परिय-चारु । गंधोवएण दिण दिण पवित्, मिच्छत्त-वसण-वासण-विरत्तु । अरिराय-गाइ-गोवाल-ज्ज, बल्लालएव-पारवहंसमज्ज । सम्वहं सम्बेसह रयण-साहु, वावरई बारम्गलु चित्त-गाहु । सिवदेउ तासु हुउ पढनु सूण, सिरि दाण (वंत) ण गंध-थूण । परियाणा णिहिल-कला-कसार, विण्णाण-विसेसुज्जल-सहाउ । मह-महा-पंडित वि (3)-सियासु, अवगमिय-णिहिस-विज्जा-विसासु।