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गंगा-तरंग - कल्लोल -माल, समकित्ति - भरिय - ककुहंतराज । कलयंठि-कंठ-कल-महुर-वाणि, गुण गरुव- रयया- उप्पत्ति-वाणि । रिराय-विसह संकरहो सिट्ठ सोहग्ग- लग्ग गोरिव्वदिट्ठ ।
पत्ता - तहिं पुरे कइ-कुल-मंडलु,
दुण्य खंड मिच्छन्त त्ति या जिन्सड । सुपसिद्ध कह लक्खणु, बोह - विक्ख पर-मय- राय या छित्तड ॥४॥ एक्कहिं दिये सुकइ पसरण-चित्तु, ािंस सेज्जायले झाइयइ सद्दत्त । मह बोहर धड गरुय- सविसु, बुहयण भन्वयाहं जणिय-हरिसु । कर-कंठ-करण पहिरण प्रसक्कु,
- दर मई ते सजोरु थक्कु । महु सु-कइत विज्जा-विलास, बुहयण-मुह-मंड साहिलासु । श्राणंद-लयाहरु अमिय-रोय, या वियाग सुबाइया इत्थ को वि । महं सुह-कम्म-परियह सहाउ, उग्गमिड सहिग्वड दुइ-विद्दाउ । एमेव कत्ता-गुण-विसेसु, परिगल णिच्च महुणिरवलेसु । केणुप्पाएं अज्जियां धम्मु, फिज्जइ उचाउ इह भुवणि रम्मू ।
पाइयह धम्मु-माणिक्कु जेय, सहसा संपद्द सुद्ध मणेय । धम्मेण रहिउ र जम्मु बंभु, इय चिंतालु कह-चित्तु रंभु । किं कुयामि एत्थ पयडमि उचाउ,
जें लग्भद्द पुराण- पहाव-राउ । मणे भाइ माणु सुइ-वेल्लि कंदु, -दल- बिसाए शिलिचि दंदु | - भिर- शिद्दाणंद-भुत्तु संवेइय-मणु जा सिज सुत्त । ता सुइतरि सुसम पसरा, निसास- जक्खिरिण तम्मि पक्ष ।
जैनप्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह
पत्ता
वाहारउ ताइ ह सुद्द - सहाव, कइ-कुल- विलयामत गलिय-गाव । जिणं- धम्म- रसायण- पाण-वित्त, तु धरण परिसु जासु चित्त । चिंता-किल्लेसु जं तुम्ह बप्प, तं तजिवि सज्जद्दि मण- विथप्प ।
श्रमल्ल-राय-मद्दमंति सुद्ध, जिणं सास-परिणय गुण पबद्ध । कण्हडु-कुल-कइरव- सेय- भालु, पहुणा समज्ज सब्ब पहाणु । सम्मत बंतु भासण्या भव्वु, सावय-वय- पालणु गलिय-गन्वु ।
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सो तुम्हम-संस
जणिय-दुहंसउ गिरणासिहद्द समुच्चड । सुपयासि कइत तुम्ह पहुत्तणु, जि-धम्मुल उच्च ॥ ५ इउ मुणेवि मय्यसि दिलहि बंदु, इह कज्जे म सज्जया होहि मंदु । सहो या में विरयहि पयडु भन्छु, सात्रय-वय-विहि- बित्थरए-कम्बु । इ पभणेवि भंजिवि मण महत्ति, गय अंबादेवी यय थत्ति ।
परि गल्लिय विद्यावरि गोसु बुद्धु,
कइ - लक्खगु संजम - सिरि- विसुद्ध ।
जिणु वंदिवि अज्जिवि धम्म- रयणु, काय मणे लालस्त्रिय-य ।
मुहु मुहु भावइ जं स्यणि वत i अंबादेविए भणि पवित्त । तम लीड ए हवइ कयावि सुरगु महु मण चिंतासा-धवखु पुएछु । गंजोरित्जय- मणु लक्खणु बहूउ, सोयरीड कष्व करणायारूड । यि घरे पतउ वा गंध-हत्थि, मय-मत्त पुरिय मुहरूह-गर्भास्थि । चसि हुड स-सर दस - दिलि भरंतु, 1. भणु को या परिच्छद्द तो तुरंतु ।