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वीरसेवामन्दिर-प्रन्थमाला पत्ता
(61) बाहुबलिदेव-चरिउ (बाहुबलि-चरित) जिण-समय-पसिन्द्वहं धम्म-सद्धिहं वोहणत्थु महसावयहं।। कवि धनपाल । रचना काल १९५४ इयरह महलोयहं पक्षिय-मोहहं परिसेसिष-हिंसावयह। प्रादिभाग:
सिरिरिसहणाह-जिण-पय-जुयलु, मइ अमुणते अक्खर-विसेसु, न मुणमि पबंधु न ईद-लेसु।
पणविवि णासिय-कलि-मलु । सहावसदु ण विहत्ति प्रत्यु,
पुणु पढम-कामएवहो चरिउ,
माहासमि कयमंगलु । धित्तणेण मह रहउ सत्थु । दुजणु सज्जणु वि सहावरोवि,
साय-बाय-वयणं दरिसंती, महु मुक्खहो दोसु मलेउ कोवि।
दुविह-पमाण-समुज्जल-णेत्ती। पद्धडियावधे सुप्पसगणु,
पत्रयण-वयण-सण-गिर-कोमल, अवगमड अत्थु भब्वयणु तयणु ।
सह-समूह-दसण-सोहामल । होणक्खरु मुणेवि इयरु तस्थु,
सालंकार-अहर-पडणावइ, संथवड एंणु वज्जेवि अणत्थु ।
पय-समास-भालुख-दलु भावह । जं अहियक्खरु मत्सा-विहाउ,
गण चउ-णासा-सु-परिट्टिड, तं पुसउ मुणि वि जणियाणु राउ।
दो-उवमोय-सवणजुउ-संठिउ । सय दुरिण छ उत्तर प्रस्थसार,
विग्गह-तण-रेहागलि-कंदलि, पद्धडिय-छंदणाणा-पयार ।
णय-जुय-उरय-कढिण वच्छथलि | बुझहु ति-संहस सय चारि गंथ,
मह वायरणुउ अरु जड दुग्गमु, बत्तीसक्खर शिरु-तिमिर-मंथ।
अत्य-गहीर-गाहि-सुमणो रमु । चदु-दुहय सग्ग पिहु बिहु पमाण,
दुविह-छंद-भुव-जुभ-जग-जणणिहिं, सावय-मय-बोहण सुद्ध-ठाण ।
जिणमय सुत्तसार माहरणहि । तेरह सय तेरह उत्तराल,
तय-सिद्धत-तिबलि-सोहालत, परिगलिय विक्कमाइच्च काल ।
कह थलु तुंगुणियंबु विसालउ । सवेय रहसवहं समक्ख,
वर-विरणाण-कलासकरंगुलि, कत्तिय-मासम्मि असेय-पक्ख ।
ललियर करई-कसण-रोमावति । मत्तमि दिण गुरुवारे समाए,
अंग-पुन्छ ऊरू-णिभंतिए, घट्टमि रिक्खे साहिज्ज-जोए ।
पय-विहत्ति-लीलई पय-दितिए। नवमास रयंतें जयरत्यु,
विमल-महागुण-णह-भा-भासुर, सम्मत्तउ कम कम पहु सत्थु ।
गाव-रस-गहिर-वीण तंतीसर। धत्ता
हिम्मल-जस-भूसिय-सेयवर, . तिथंकर वयणुन्भव, विहुणिय-दुब्भवजण-वल्लह परमेसरि।
पविमल-पंचणाण सुइकय कर। कव्व-करण महपावण, सुहसरिदावण,महुउवणउ वाएसरि। मा
हुय अणुवय-रयण-पईव-पत्थे महासावयाण सुपसरण- मह उपरि होड पसरण मण मोह-पडल-णिण्णासणि। परम तेवरा-किरिय-पयडण समाथे सुगुण सिरि-साहुल- तियग्ण सुद्धिय तहणविवि पय-जिण मुह-कमल णिवासिणि॥ सुव-लक्खण-विग्इए भन्न-सिरि-कण्हाइस-यामंकिए
गुज्जरदेस मज्मि णय-बट्टणु, सावयार-विहि-समत्तणो याम अट्टमो परिच्छेउ समतोमा
वसह विउलु पल्हणपुर पहणु। 'प्रति सं० १५६५,
वीसलएउ-उ-पय-पालट, (जैन सिद्धान्त भास्कर भाग ६, ३ से)
कुवलय मंडणु सयलुव मालउ ।