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________________ जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह [१७ घत्ता-अरियण तामर सायर सुहमण, जण जाणिय जिणमइ जुषह तासु । सायर दोसायर हायर तिलया। ताहं गय सत्त पमुक्क तासु। वणि जिणयत्त कहंतर पुण्ण णिरंतर पढमउ अल्हणु सुहि सरय सूरु, कह चिरइज्जइ गुणणिलया ॥४॥ परिवार-णरह-परमास-पूरु। पवयण वयणामय-पाण-पोछ, अवमेय महामइ-दलिय,दुर्छ । णिक्कलंकु अकलंकु चउमुहो, जिणवणच्चग-पूयण-सयत्तु, कालियासु सिरिहरि सुकइ सुहो। अहिणाणि य णिहिल विणाय वित्त । व्य विलासु कहवासु अमरिसु मिच्छत्त · चिय णच्चहल्लु, दाणु वाणु ईसाणु सहरिसो। गंभीर परम हिम्मय महल्लु । पुफ्फयंतु सुसयंभु भल्लो , किल्लिल्ल-बेल्लि पिल्लूर-णिल्लु, बालमीउ सम्मई रसिल्लो । इह कईउ भीम इण दिठिया, भायर सुउ लक्खण णेह-गिल्लु । परिवार-भार-उद्धरण-धीरु, फुरद केम महो मह वरिट्टिया। जिण-गथ-वारि-पावण-सरीरु । धाउलिंग गुण णउ गुण ण कारो, कम्मु करणु ण समासु सारो। पवहिय-तियाल-वंदण-विसुद्धि, पय समित्ति किरिया विसेसया, सुख सत्थभाव-भावण अमुद्धि । संधि छंदु वायरण भासया। बहु-सेवय-पर-सिर-घट्ट-पाय, देस भास लक्खणु ण तक्को , वंदीयण दीणह दिण्ण चाय | मुणमिणेव श्रायहि गुरुक्कयो। भायणिहि पयोसिय सूरिबंदु, महाधवलु जयधवलु ण दिट्ठो, सउलामर-बह-कय चंदु-बंदु ण उर वप्प पयमिइ वरिटुओ। घत्तातह ण दिटु सिद्ध'तु पाय............? वहोसोहणहो रसाल हो भोयपराल हो कलकणिट्ठत्थ सहोयर छहवि महामइ सोहण रिउवल सोहण गुणराहणविहियायर गाहलु साहुलु सोहण मइल्लु, इय जिणयत्तचरित्ते धम्मत्थ-काम-मोक्खवण्णाणुब्भाव तह रयणु मयणु सतगुण जि छइल्ल । सुपवित्त सगुणसिरिसाहुलसुउ-लक्खण-विरहए भवसि छहमहि भायर अल्हणाह भत्त, रिहरस्सणामंकिए जिणयत्तकुमारुष्पत्ति-वण्णणो णाम पढमो छहमवि ताहा माणासत्त चित्त । परिच्छेत्रो समत्तो ॥॥ संधि ॥ छहमवि ताहर पय पयरुह-हुरेह, अन्तिम भाग: छहमाह मयणोवम-कामदेह । इह होतउ पासि विसाल बुद्धि, साहु लहु सुपिय पिय यम मणुज्ज, पुज्जिय जिणवर ति-रयण विसुद्धि । यामंज्जय ताकय णिलय कज । जायस रहवंस उवयरण सिंधु, ताह जि णंदणु लक्खणु सलक्खु, गुण गरुवामल माणिक्क सिंधु । नक्खण-लक्खिउ-सयदल-दलक्खु । जायव परणाहहो कोसवालु, विलसिय-विलास-रस-गलिय-गव, जसरस मुहिय दिक्चक्कवालु । ते तिहुअणगिरि णिवसंति सम्व । जसवालु तासु सुउ मइ परालु, सो तिहुवणगिरि भग्गउ उज्जवेण, लाहडुबहउ बहलक्ख राख्नु । वित्तउ बजेण मिच्छाहिवेण ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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