SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०] वीरसेवामन्दिर-प्रन्थमाना भब्वयणहाच दुारड हरत। इयासार सुकुमालसाम मबाहरचारए सुदरयर र करवायीए पुहेण अणिदे, स्यय णियरस भरिए विदुह सिरिमुका-सिरिहरविरहए । पोमसेण गामेण मुणिदे। पीये पुत्त कुमरगयामंकिए अग्गिा -बाउभूह-सूरमित्त मेल भासिड संति प्रणेयई सत्थई, पण वयगणो णाम पठमो परिच्छेनो समतो ॥१॥ मिण सासणे अवराई पसत्थई। अन्तिममाग:पर सुकमानसामिया मालहो, मासि पुरा परमेटिहि भत्तड, करसह मुह विवरिय परवालहो। चडविचार दाण अणुरतड । चारु चरित महुँ पडिहासह वह, सिरिपुरबाड-वसमंडण चंधड, गोवरु बुहयणमण हरण विजह । णिय गुण गियरायंदिय बंधउ । तं णिसुणे वि महियले विक्खाएं, गुरु भत्तिय परणमिय मुणीसर, पयडसाहु पीथे तणु जाए, हामें साहु जग्गु वणीसर, सलखण जगणी गम्भुप्पगणे, वहो गल्हा पामेण पियारी, पउमा भत्तारेण रवयणे । गहिणि मण इच्छिय सुहयारी। सहरसेण कुबरेण पउत्तर, पविमन सीजाहरण विहूसिय, भो मुणिवर पई पाणड जुत्तड। सुह सज्जण बुहण्णा पसंसिय । तं महु अग्गा किरण समासहि, ताहे गणुरुहु पीथे जायउ, विवरेविण माणसु उत्खासहि। जण सुहया महियले विक्खायउ । ता मुणि भणइ वष्य जाणिसुणहि, भवतु महिंदे बुच्चइ बीयर, पुन्व-जम्म-कब दुरियई विहुणहि । बुहयणु मणहरु विकत तड्पड । जल्हणु णामें भणि चडत्थड, धत्ता-अमस्थि विणिरुसिरुहरु, सुबह तमचरित विरयावहि । पुण वि सलक्खणु दाग-समत्थर । इह रत्ति वि कित्तिणु तव तणउ सुहु परस्थे धुउ पावहि ।। बटर सुर संपुण्णु हुभाउ बह, ता भएणहि दिणि तेण कहल्ले, समुदपाल सत्तम भयउ वह। जिणमणियागम सत्य रसल्लें। भट्टा सुतण्यपालु समासिड, कई सिरिहरु विणएण पडत्तर, विण्याइय गुण गणहि विहूसिड । तुहु परियाणिय जुत्ता जुत्तउ । पढमहो पिय थामेण सलक्खण पुर'बुहु हियय सोक्स-विधारणु, लक्षण-कलिय-सरीर-वियखण। भवियण मण चितिय सुहकारणु । वाहे कुमरु णामेण तारुहु, जह सुकमालसामि कह सक्सहि, बापट मुहपहपहप सरोरुह । विरएविशु महु पुरउ ण रक्खहि । विणय-विहूसण भूसिउ कायड, ता महु मणहु सुक्खु पाइप लाइ, मय-मिच्छत्त-माण-परिचतड । तंणिसुणेवि भासइ सिरिहरु कह पत्ता-णाणू प्रबह बीयर पवन कुमरहो हुम पर गेहिणि । पउमा भणिया सुप्रणहिं गणिय जिण-मप-पर बहुगेहिणि । भो पुरवाड़-पंस सिरिभूषण, तहे पाल्हणु णामेव पहूपर, . धरिय-विमन-पम्मत्त विहमण । परम पुत् मयण-सरूवट। एक्कचित हो एवि भायणहि, बीयड साल्हणु जो जिणु पुज्जा, अपर पुडि मा अवगरवाहि । . जसु स्वेण व मणहरू पुज्जा ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy