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जैनप्रन्थ-प्रशस्ति-मंग्रह
जो चरण कमल प्रायम पुराण, पाउत्तई बहु साइम-समाणु ॥ पाइरिय महा-गुण-गण-समिद्ध, वच्छल्ल-महोवहि जय पसिद्ध । तहो वीरइंदु मुणि पंच मासु, दूरुज्झिय-दुम्मइ, गुण-णिवासु ॥ सउजएण-महामाणिक्क-खाणि, वय-सीलालंकिउ दिव्व-वाणि । सिरिच'दु णाम सोहण मुणीसु, संजायउ पंडिय पढम सीसु॥ तेणेउ अणेय छरिय-धामु, दसण-कह-रयण-करंडु णाम्। किउ कम्वु विहिय-रयणोह-धामु, ललिगक्खर सुयणु मोहिरामु जो पढइ पढावइ एयचित्तु, संलिहइ लिहावइ जो शिरुत्तु । प्रायण्णा मरगाह जो पसाधु, परिभावह अह-णिसु एउ साधु । जिप्पड ण कसायहिं इंदरहि, तोजिय इह सो पासंडिएहि ॥ वहो दुक्किय कम्मु असेसु जाइ, सो लहर मोक्ख-सुक्खई भवाई। जिगणाह-वरण-जुय भत्तएण, अमुणते कम्वु करंतएण। जंकाई वि लक्खण-छंद-हीणु,
जह मत्त तुत्तउ मह अहिय-हीषु । पत्ता- खमड सव्वु जण णमिय,
सुय-देवय भएणार मह॥ जमि पुज्जणिज्ज सिरिचंदमई,
वह य मडारी विउसमह । एयारह तेवीसा बाससया विक्कमस्स महिवाइयो।
जहया गया हुवइया समाधिए सुदरं वयं । करणणरिंदहो रजसुहि सिरि सिरिबालपुरम्मि बुह । चालुपुर महि सिरियंदे एड कर मंदडपच्यु जयम्मि ।।
अबउ जिसवरू जपङ जिधम्म वि जबर जब जबड स्पा संबइ सुईकर।
पणवत हा मव्वयण
कुण्ड जयहो सा सुह परंपर । दाण पुज्ज दय-धम्म-रय सच्च सउच्च वि चित्त । भव जयंतु सया सुयण बहगण परहिय चित्त । जयउ गरवह णाम गयणेत्तु पयपालउ धम्मुरउ ।
सयणबंधु परिवारि सहियड णिण्णासिय विउणु जणु । जण शियय पियकम्मि विहियड पच्चयउ मेइणि सई हवड । परिसर देक्सया वि कित्ति धम्मु गणरह जयउ जसु खंडण ह कयादि । जाम मेइणि जाम महणइड कुल-पन्वय जाम तहिं। जाम दीव गह रिक्ख-गह पालइ मायम सयल । जाम सग्गु सुर बियरु सुरवह जाम रायणु चंदु-रवि । जंजिणधम्मु पसत्यु ताम जणउ सुहुमम्बयणि जयउ एहु जड़ सत्यु । जो सम्बणु तिलोयक्इसिद्ध सहा मंड।
ताम जणउ सुहु भग्वणि दसणकह रयणकरंद। इति श्री पंडिताचार्य-श्रीचन्द विरचिते रत्नकरण्डनाम शास्त्र समाप्तम् । -सुकमालचरित (सुकुमानचरित)
विबुध श्रीधर रचना सं० १२०० पादिभाग:सिरि पंच गुरुहं पर कबह पविवि संजय समय है। सुकमालसामि कुमरहा परिड पाहासमि भम्वयण हैं।
एक्कहिं दिखे मन्बमब-पिवारए, बलाइबामे गामे मणहारए। सिरि गोविंदचंद शिव पालिए, अब हयारयकर -बालिए! दुर्गाखव बारहनिबवर मंडिए,
विमर्मविरे बाबा
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