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जैनमन्व-प्रशस्तिसंग्रह
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कम्बु करंतु केम णवि लजमि,
तणंदाह ज लिहइ लिहावइ, सह बिसेस पिय जणु किह रंजाम ||
ते संदहि जे भत्तिह भावहि । तो विजिणिव-धम्म-अणुराएँ,
जे पुणु के बिहु पढहि पढावहि, हसिरि-सिद्धसेण-सुपसाएँ।
ते णिय-पर-दुहु दूरे लुटावहि ॥ करमि सयं जि एलिणि-दल थिउ जलु,
एयहो प्रत्थु के वि जे पयडहिं, अखहरेह णिरुवमु मुत्ताहलु ॥
ताण णिरंतर सोक्खहि सुहडहिं । पत्ता-जा जयरामें पासि विरहय गाह-पबन्धि ।
जे णिसुणेवि परिक्खा भत्तिए, साहम्मि धम्मपरिक्ख सा पददिया-अन्धि ॥१॥
ते जुज्जहि हिम्मल मइ सत्तिए ।
सयल पाणिवग्गहो दुहु हिज्जा, इस धम्मपरिक्खाए चउवागःहिट्टियाए वित्ताए हहरिषण
सोम समिविए महि सोहिज्जा । कए पल्मो सन्धी परिसमतो ॥ संधि ॥
परहिय करणि विहंडिय-अंहहो, अन्तिम भाग:
होउ जिणत्तणु चउबिह संघहो । इह मेवाड-देसि-जण-संकुलि,
पयडिय बहु पयाव अरिवार, सिरिजहर-णिग्गय-धक्कड-कुलि ।
एंदउभूवह सहु परिवारें। पाव-करिंद-कुम्भ-दारण हरि,
धम्म पवत्तणेण दुह-हारें, जाउ कलाहि कुसलु णामें हरि ॥
यंदउ पय बहुबिह-ववहारें। तासु पुत पर-णारि-सहोयर,
पत्ता-संखए दुसहसु साहिउ सदरिया हिउ इउकह रयणु भगव्वह।। गुणगण-णिहि कुल-गयण-दिवायरु ।
जो हरिसेण धराधर उयहि गयणधर ताम जणउसु-भव्वहं । गोवड्ढणु णामें उप्पण्णउ ।
इय धम्म परिक्खाए चउबग्गाहिट्ठियाए बुह-हरिसेण जो सम्मत-रयण-संपुएबउ ॥
कयाए एयरसमो संधि समतो ॥ सन्धि ११ ॥ तहो गोबड्ढणासु पिय गुणवइ. जो जिणवर-पय णि वि पणबह ।
६-जंबूसामिचरिउ [जंबूस्वामीचरित] कविवर वीर ताए जणिड हरिसेणे णाम सुउ,
रचनाकाल संवत् १०७६ जो संजाउ विबुह-का-बिस्सुउ ।
आदिभाग:सिरि-चित्तहु चहवि प्रचलउग्शे, विजयंतु वीर-चरणग्गि-चंपए मंदिरंमि थरहरए । गवउ-णिय-कजें जिणहर-पउरहो । कलसु छलंतं तोए सुतरणि-लग्गत-बिंदु-छंकारा ॥१॥ तहिं छंदाजकार-पसाहिय,
सो जयउ जस्स जम्माहिसेय-पय-पूर-पडुरिज्जतो। धम्मपरिक्ख एह ते साहिय ।।
जणियहि मसि हरिसको कणयगिरि राइनो तइया ॥२ जे मज्मस्थ-मणुय प्रायरहि,
जयउ जियो जस्सारुण-णह-मणि-पडिलग्ग-चपखु सह सक्खो। • ते मिच्छत्त भाउ अवगएणहिं ।
अणिइच्छिय सम्वावदुयवस्थ-परिकलिय-लोयणो जाम्रो ॥३॥ ते सम्मत्त जेण मलु खिजइ,
समिरसु अवेय भामिय जोइसगण-जणिय-रयणि-विणि-संक। केवलणाणु ताण उप्पजइ ॥
इय जयउ जस्स पुरो परिचयं चारु सुरवाणा ॥॥ बचा-सहो पुणु केवलणाणहोणेव-पमाणहो जीव पएसहिं सुहडिउ, सो जयउ महावीरो माणाणल-हुणिय-रह सहो जस्स । बाहावी प्रवड प्राइसपर्वतउ मोक्ख-सुक्खु-फलुपयरियड ॥ णामि फुरद भुषणं एक्कं एक्खत्तमिव गयणे ॥२॥ विक्कमणिव-परिवत्तिय कालए,
जयउ जियो पासदिव्य णमि-विणमि-किवाण-फुरियपडिविंबी गपए परिस सहस पडतालए।
गहियाणं रूव-जुयलोव ति-जय-मणु सामियो रिसहो ॥६॥ इस उमण भविवजय सुहबरु,
जबड सिरिपासणाको रेहह जस्संग शीलमाभियो। .. हम-पहियामासक्-सापर।
प्रमियो सहि लिहिय शब-यशोग्य मणि-गम्भिहो पाकरप्पो