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प्रस्तावना
१४१ जाता है। व्रत के दिन उपवासपूर्वक जिन पूजन अभिषेक, स्वाध्याय सामायिक प्रादि धार्मिक अनुष्ठान करते हए समय व्यतीत करना चाहिये। इस व्रत को पाँच प्रतिपदा, और पांच वर्ष तक सम्पन्न करे । पश्चात् उसका उद्यापन करे। यदि उद्यापन करने की सामर्थ्य न हो तो दुगने समय तक व्रत करना चाहिये। इस व्रत का अनुष्ठान चाटसू (चम्पावती) नगरो के श्रावक श्राविकाओं ने सम्पन्न किया था। उस समय राजा रामचन्द्र का राज्य था , वहाँ पार्श्वनाथ का सुन्दर जिनालय था और तत्कालीन भट्टारक प्रभाचन्द्र भी वहाँ मौजूद थे। और जो गण-घर के समान भव्यजनों को धर्मामत का पान करा रहे थे। वहाँ खंडेलवाल जाति के अनेक श्रावक रहते थे। उनमें पण्डित माल्हा पुत्र कवि मल्लिदास ने कवि ठकुरसी को मेघमाला व्रत की कथा के कहने की प्रेरणा की। वहाँ के श्रावक सदा धर्म का अनुष्ठान करते थे। हाथुवसाह नाम के एक महाजन और भट्टारक प्रभाचन्द्र के उपदेश से कवि ने मेघमाला व्रत कब कैसे करना चाहिये इसका संक्षिप्त वर्णन किया। कहाँ तोषक, माल्हा, और मल्लिदास आदि विद्वान भी रहते थे। श्रावक जनों में प्रमुख जीणा, ताल्हु, पारस, नेमिदास, नाथू सि और भुल्लण, वउली आदि ने व्रत का अनुष्ठान किया। कवि ने इस ग्रंथ को सं० १५८० में प्रथम श्रावण शुक्ला छट के दिन पूर्ण किया था।
__कवि ने इसके अतिरिक्त सं० १५७८ में 'पारस श्रवण सत्ताइसो' एक कविता बनाई थी, जो एक ऐतिहासिक घटना को प्रकट करती है, और कवि के जीवन काल में घटी थी, उसका आँखों देखा वर्णन कवि ने लिखा है। इनके अतिरिक्त जिनचउवीसी, कृपणचरित्र (सं० १५८० पूस मास) पंचेन्द्रियवेल (सं० १५८५ का० सु० १३) और नेमीश्वर की बेल प्रादि रचनायें रची थीं, जो स्व-पर-सम्बोधक हैं ? कवि-परिचय
__ कवि चाटसू (वर्तमान चम्पावती) नगरी के निवासी थे। इनकी जाति खंडेलवाल, और गोत्र अजमेरा था। इनके पिता का नाम 'घेल्ह' था, जो कवि थे, इनको कविता अभो मेरे देखने में नहीं आई। किन्तु कवि ने पंचेन्द्रियवेल के अन्तिम पद के 'कवि-घेल्ह सुतनु गुण गाऊँ' वाक्य में उन्हें स्वयं कवि ने सूचित किया है। कवि के पुत्र का नाम नेमिदास था, जिसने मेघमाला व्रत की भावना की थी। कवि की उल्लिखित रचनाओं का काल सं० १५७८ से सं० १५८५ तक का उपलब्ध ही है। इनके अतिरिक्त अन्य किन कृतियों का निर्माण किया, यह विचारणीय है। संभव है ग्रन्थ भंडारों में इनकी अन्य कृतियाँ भी अन्वेषण करने पर मिल जावें।
यह प्रशस्ति सुगन्धदसमीकया की है जिसके कर्ता कवि विमलकीति हैं । इस कथा में भाद्रपद शुक्ला दशमी के व्रत की कथा का वर्णन करते हुए उसके फल का विधान किया गया है। कथा संक्षिप्त और संभवतः ८ कडवकों को लिये हुए है। कवि ने दशवीं व्रत के अनुष्ठान करने की प्रेरणा की है । कवि ने कथा कब बनाई, इसका रचना में कोई उल्लेख नहीं है । कवि-परिचय
ग्रंथकर्ता विमलकीति ने रामकीति गुरु का विनय कर इस कथा को बनाया है प्रस्तुत रामकीर्ति गुरु कौन थे और उनका समय क्या है ? यह विचारणीय है। रामकीति नाम के चार विद्वानों का उल्लेख
१. इनके परिचय के लिये देखो, अनेकान्त वर्ष १४ किरण १ में प्रकाशित 'कविवर ठकुरसी और उनकी कृतियाँ' नामक मेरा लेख पृ० १०