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जन प्रन्य प्रशस्ति संग्रह १२९२ (सन् १२३५) में 'त्रिषष्ठि स्मृति शास्त्र' आशाधर जी ने बनाया उस समय उनके पुत्र 'जैतुगिदेव' का राज्य था। इससे स्पष्ट है कि उनकी मृत्यु सं० १२६२ से पूर्व हो चुकी थी। इसीसे संवत् १२६६ में जब सागार धर्मामृत की टीका देवपाल राजा के पुत्र जैतुगिदेव के राज्य में, जब वह अवन्ती में था, तब नलकच्छपुर के चैत्यालय में पं० प्राशाधर जी ने 'भव्य कुमुचन्द्रिका' बनाई । और वि० सं० १३०० में जब अनगार धर्मामृत की टीका बनी, उस समय भी जैतुगिदेव का राज्य था। कवि-परिचय
कवि दामोदर का वंश 'मेडेत्तम' था। इनके पिता का नाम कवि माल्हण था, जिन्होंने 'दल्ह' का चरित बनाया था, यह भी सलखणपुर के निवासी थे। इनके ज्येष्ठ भ्राता का नाम जिनदेव था । कवि ने अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख करते हुए लिखा है कि गुणभद्र के पट्टधर सूरिसेन हुए और उनके शिष्य कमलभद्र हुए और उनके शिष्य प्रस्तुत कवि दामोदर थे। कवि ने लिखा है कि पृथ्वीधर के पुत्र ज्ञानचन्द्र और पंडित रामचन्द्र ने उपदेश दिया, तथा जसदेव के पुत्र जसनिधान ने वात्सल्य भाव प्रदर्शित किया था। कवि पं० आशाधर के समकालीन थे। और वे उस सलक्षणपुर में रहे भी थे। ग्रंथकर्ता ने अपना यह ग्रंथ वि० सं० १२-७ में बनाकर समाप्त किया था।
मालव प्रांत के शास्त्र भंडारों का अन्वेषण करने पर संभव है अन्य रचनाएं भी प्राप्त हो जाय, और उससे इतिहास की गुत्थियों के सुलझाने में सहायता मिले ।
परिशिष्ट नं० १२ का परिचय प्रस्तुत प्रशस्ति 'मेघमाला वयकहा' की है, जिसके कर्ता कवि ठक्कुर हैं। इसमें मेघमाला व्रत की कया अंकित की गई है। कथा संक्षिप्त और सरल है और हिन्दी भाषा के विकास को प्रस्तुत करती है। यह कथा ११५ कड़वक और लगभग २११ श्लोकों में पूर्ण हुई है, जिनमें उक्त व्रत के अनुष्ठान की विधि और उसके फल का वर्णन किया गया है । इस व्रत का अनुष्ठान भाद्रपद मास की प्रतिपदा से किया
गृहस्थाचार्य पं० आशाधर जी से निवेदन किया कि मैं प्रायः राज्यकार्य से अवरुद्ध रहता है। अतः मेरे कल्याणार्थ व्रतों का उपदेश दीजिये। तब उक्त पंडित जी ने प्रार्य केशवसेन के वचन से नागदेव की
धर्मपत्नी के लिए सं० १२८३ में 'रत्नत्रय विधि' नाम की कथा संस्कृत गद्य में बनाई थी। देखो राजस्थान जैन ग्रन्थ भंडार सूची भा० ४ पृ० २४२ ७. नलकच्छपुरेश्रीमन्नेमिचंत्यालयेऽसिधत् । टीकेयं भव्यकुमुदचन्द्रिकेत्युदिता बुधैः ।।१२० पण्णवद्वयेक संख्यान विक्रमाङ्क समात्यये । सप्तम्यामसिते पौषे सिद्धयं नन्दताच्चिरम् ॥१२१
-सागारधर्मामृत टीका प्रशस्ति ८. प्रमारवंशावार्थीन्दु देवपालनृपात्मजे ।
श्रीमज्जतुगिदेवेऽसि स्थेभ्नाऽवन्तींभवत्यलम् ।११६ नकलच्छपुरे श्रीमन्नेमिचैत्यालयेऽसिधत् । विक्रमाब्द शतेष्वेषा त्रयोदशसु कीत्तिके ।
-अनगारधर्मामृतटीका प्रशस्ति