SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ . अन अन्य प्रमस्ति संग्रह मिलता है। उनमें प्रथम रामकीर्ति के शिष्य विमलकीति हैं। दूसरे विमलकीति मूलसंघ बलात्कारगरण और सरस्वतीगच्छ के विद्वान थे। इनके शिष्य प्रभाचन्द्र ने सं० १४१३ में वैशाख सुदि १३ बुधवार के दिन अमरावती के चौहान राजा अजयराज के राज्य में लंबकंचुकान्वयी श्रावक ने एक जिनमूर्ति की प्रतिष्ठा कराई थी। जो खंडित दशा में भौगांव के मन्दिर की छत पर रखी हुई है। ___ तीसरे रामकीर्ति भट्टारक वादिभूषण के पट्टधर थे, जिनका विम्ब प्रतिष्ठित करने का समय संवत् १६७० है। यह रामकीर्ति १७ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के विद्वान हैं। चौथे रामकीति का नाम भट्टारक सुरेन्द्रकीति के पट्टधर के रूप में मिलता है। इनमें प्रथम रामकीर्ति का सम्बन्ध ही विमलकीर्ति के साथ ठीक बैठता है। इनमें प्रथम रामकीर्ति के शिष्य यशःकीर्ति ने 'जगत सुन्दरी प्रयोगमाला' नाम के वैद्यक ग्रन्थ की रचना की है। जिनका समय विक्रम की तेरहवीं शताब्दी है। रामकीर्ति जयकीर्ति के शिष्य थे, जिनकी लिखी हुई प्रशस्ति चित्तौड़ में संवत् १२०७ की उत्कीर्ण की हुई उपलब्ध है । यशःकीर्ति ने जगत् सुन्दरी प्रयोगमाला में प्रभयदेवसूरि के शिष्य धनेश्वरसूरिका (सं० ११७१) का उल्लेख किया है। इससे विमलकीर्ति का समय विक्रम की तेरहवीं शताब्दी हो सकता है। ___ यह प्रशस्ति 'पुष्पांजलि कथा' की है। इसके कर्ता का परिचय अभी अज्ञात हैं। और संभवतः वे अनन्तकीर्ति गुरु मालूत होते हैं। इसमें पुष्पांजलि व्रत की कथा दी गई है। ग्रन्थ सामने न होने से विशेष परिचय देना संभव नहीं है। इस कथा के कर्ता बलात्कारगण के विद्वान रत्नकोति शिष्य भावकीर्ति युक्त अनंतकीर्तिगुरु बतलाये गये हैं। इनका समय अभी विचारणीय है। २. संवत् १४१३ बैशाख सुदि १३ बुषे श्रीमदमवरावती नगराधीश्वर चाहुवाण कुल श्री अजयराय देवराज्य प्रवर्तमाने मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वती गच्छे श्रीरामकीर्तिदेवास्तस्य शिष्य भ० प्रभाचन्द्र लंबकंचुकान्वये साधु... भार्या सोहल तयोः पुत्रः सा जीवदेव भार्या सुरकी तयोः पुत्रः केशो प्रणमंति। -देखो न सि० भा०,भा० २२ मंक २ ३. एपिग्राफिका इंडिका जि० २ पृ० ४२१ ४. देखो जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला प्रशस्ति
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy