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जैन अन्य प्रशस्ति संग्रह एक दिन साह नेमचन्द्र ने कवि श्रीधर से निवेदन किया कि जिस तरह चन्द्रप्रभ चरित्र और शान्तिमाष चरित्र बनाये हैं, उसी तरह मेरे लिये अन्तिम तीर्थकर का चरित्र बनाइये । तब कवि ने उक्त चरित्र का निर्माण किया है। इसी से कवि ने प्रत्येक सन्धि पुष्पिका में उसे नेमिचन्दानुमत लिखा है। इतना ही नहीं किन्तु कवि ने प्रत्येक सन्धि के प्रारंभ में जो संस्कृत पद्य दिये हैं उनमें नेमिचन्द को सम्यग्दृष्टि, धीर, बुद्धिमान, लक्ष्मीपति, न्यायवान् और भव-भोगों से विरक्त बतलाते हुए उनके कल्याण की कामना की गई है। जैसा कि उसके ८ वीं सन्धि के प्रारंभ के निम्न श्लोक से प्रकट है
यः सदृष्टिरुदारुधीरधिषरणो लक्ष्मी मता संमतो। न्यायान्वेषणतत्परः परमत प्रोक्तागमा संगतः ।। जैनेकाभव-भोग-भंगुर वपुः वैराग्य भावान्वितो।
नन्दत्वात्स हि नित्यमेव भुवने श्री नेमिचन्द्रश्चिरं ।।
कवि ने इस ग्रन्थ को विक्रम संवत् ११६० में ज्येष्ठ कृष्णा पंचमी शनिवार के दिन बनाकर समाप्त किया है। इससे एक वर्ष पहले अर्थात् सं० ११८९ में पार्श्वनाथ का चरित दिल्ली में नट्टल साहु की प्रेरणा से बनाया था। चन्दप्रभ चरित सं० ११८७ से भी पहले बनाया था, क्योंकि उसमें उसका उल्लेख है । पर वह ग्रन्थ इस समय उपलब्ध नहीं है । और न शांतिनाथ चरित्र ही प्राप्त है। इन दोनों कृतियों का ग्रन्थ भण्डारों में अन्वेषण होना चाहिये। कवि परिचय
कवि का वंश अग्रवाल था । इनके पिता का नाम बुध गोल्ह और माता का नाम बील्हा देवी था। संभवतः इनके पिता भी विद्वान थे। कवि कहाँ के निवासी थे। यह ग्रन्थ में उल्लिखित नहीं है । संभवतः वे हरियाना प्रदेश के रहने वाले थे। अन्य दो ग्रन्थ मिलने पर कवि के सम्बन्ध में विशेष जानकारी प्राप्त हो सकती है। कवि का समय १२ वीं शताब्दी है ,
१२१ वीं प्रशस्ति 'संतिणाहचरिउ' की है जिसके कर्ता कवि शुभकीति हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ में १९ सन्धियाँ हैं। जिनमें जैनियों के १६वें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ का चरित्र चित्रण किया गया है । इस ग्रन्थ की एकमात्र प्रति नागौर के भट्टारकीय भंडार में सुरक्षित है । जो संवत् १५५१ की लिखी हुई है । ग्रन्थ सामने न होने से उसकी प्रशस्ति का ऐतिहासिक भाग नहीं दिया जा सका। और न कवि शुभकीर्ति का ही कोई परिचय या गुरु परम्परा दी जा सकी है। पर यह सुनिश्चित है कि ग्रन्थ सं० १५५१ से पूर्व का बना हुआ है। इस नाम के अनेक विद्वान हो गए हैं, अतएव जब तक ग्रन्थ प्रशस्ति पर से उनकी गुरु परम्परा ज्ञात न हो, तब तक उनका निश्चित समय बतलाना कठिन है। यदि भट्टारक जी की कृपा से उक्त चरित ग्रन्थ प्राप्त हो सका, तो फिर किसी समय उसका परिचय पाठकों को कराया जा सकेगा।
१२२वीं प्रशस्ति 'णेमिणाहचरिउ' की है जिसके कर्ता कवि दामोदर हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ में ५ सन्धियाँ हैं, जिनमें जैनियों के २२वें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ का चरित्र अंकित किया गया है, जो श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे। चरित्र आडम्बर हीन और संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है, और कवि उसे बनाने में सफल भी हुआ है। इस चरित रूप खण्ड काव्य की रचना में प्रेरक एक सज्जन थे, जो धर्मनिष्ठ तथा दयालु थे। वे गुजरात से मालव देश के 'सलखणपुर' में आये थे। और भगवान महावीर के उपासक थे। वे खंडेलवाल वंश के भूषण थे, विषय विरक्त और सांसारिक जीवन को सफल बनाने