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________________ ११९ जन प्रम्प प्रशस्ति संग्रह 'पासाइ' (प्रासापुरी) नगरी में पहुंचे थे। और वहां उन्होंने 'करकंडुचरित' की रचना की थी। यह ग्रंथ जिनके अनुरागवश बनाया गया था, ग्रन्थकारने उनका नाम कहीं भी उल्लिखित नहीं किया। कवि ने उन्हें धर्मनिष्ठ और व्यवहार कुशल बतलाया है, वे विजयपाल नरेश के स्नेहपात्र थे, उन्होंने भूपाल नरेश के मन को मोहित कर लिया था। वे राजा कर्ण के चित्त का मनोरंजन किया करते थे। उनके तीन पुत्र थे, पाहल रल्हो और राहुल । ये तीनों ही मुनि कनकामर के चरणों के अनुरागी थे । उक्त राजागण कब और कहाँ हुए, इसी पर यहां विचार किया जाता है एक लेख में लिखा है कि विजयपाल नरेश विश्वामित्र गोत्र के क्षत्रिय वंश में उत्पन्न हुए थे। उनके पुत्र भुवनपाल थे, उन्होंने कलचूरी, गुर्जर और दक्षिण को विजित किया था, यह लेख दमोह जिले की हटा तहसील में मिला था, जो आजकल नागपुर के अजायब घर में सुरक्षित है। दूसरा लेख बांदा जिले के अंतर्गत चन्देलों की पुरानी राजधानी काजिर में मिला है। उसमें विजयपाल के पुत्र भूमिपाल का दक्षिण दिशा और राजा कर्ण को जीतने का उल्लेख है। तीसरा लेख जबलपुर जिले के अंतर्गत 'तीवर' में मिला है, उसमें भूमिपात्र के प्रसन्न होने का स्पष्ट उल्लेख है, तथा किसी सम्बन्ध में त्रिपुरी और सिंहपुरी का उल्लेख है। इन लेखों में अंतिम दो लेख टूटे होने के कारण उनका सम्बन्ध ज्ञात नहीं हो सका। सं० १०६७ के लगभग कालिंजर में विजयपाल नाम का राजा हुना। यह प्रतापी कलचुरी नरेश कर्णदेव के समकालीन था। इसके दो पुत्र थे देववर्मा और कीर्तिवर्मा । कीर्तिवर्मा ने कर्णदेव को पराजित किया था, ऐसा प्रबोध चन्द्रोदय नाटक से जान पड़ता है। अतएव मुनि कनकामर का रचना काल सन् १०६५ (वि० सं० ११२२) या विक्रम संवत् १२०० के लगभग जान पड़ता है । विशेष के लिए डा. हीरालाल जी द्वारा लिखित करकंडु चरित की प्रस्तावना देखना चाहिए। परिशिष्ट नं. २ (लिपि प्रशस्ति-परिचय) ११६ वीं प्रशस्ति महाकविपुष्पदन्त के आदिपुराण की लिपि प्रशस्ति है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्व की है । इस प्रशस्ति में आदिपुराण को लिखाने वाले ग्वालियर के सदगृहस्थ पद्मसिंह के परिवार का विस्तृत परिचय कराते हुए उनके धार्मिक कार्यों का समुल्लेख किया गया है। प्रस्तुत प्रशस्ति को ग्वालियर के राजा डूंगरसिंह के सुपुत्र श्री कीर्ति सिंह के राज्य काल में सं० १५२१ में काष्ठा संघ के भट्टारक १. इस नाम के अनेक गांव और नगर हैं । एक मासापुरी वह स्थान है, जो औरंगाबाद जिले के अन्तर्गत है और जहाँ सन् १८०३ में मराठों और अंग्रेजों का युद्ध हुआ था, अब एक छोटा-सा गांव है। दूसरा पासीरगढ़ खान देश में है, जो पाशा देवी के नाम पर बसाया गया है। तीसरा पासी नाम का स्थान राजपूताने के बूंदी राज्य में है । चौथा प्रासापुरी नाम का स्थान, पंजाब के कांगड़ा जिले के अन्तर्गत कीर ग्राम से १२ मील की दूरी पर पहाड़ की चोटी पर आसा देवी प्रतिष्ठित है और जिसके कारण उसका नाम प्रासापुरी कहलाता है। पांचवीं पासापुरी नाम का एक गांव भोपाल (भोजपुरी) से उत्तर की मोर ४ मील पर बसा हुमा है। यह १२वीं शती में संभवतः एक विशालनगर रहा होगा। ग्रंथकार द्वारा अभिमत प्रासापुरी इनमें से कौन है यह विचारणीय है । और वह संभवतः कालिंजर भोर भोपाल इसके पास-पास कहीं होना चाहिए।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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