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प्रस्तावना
कवि के पितामह का नाम साहु सीह्ना और पिता का नाम खेत्ता था, जाति खंडेलवाल और गोत्र लूहाड्या था। यह लुवाइणिपुर के निवासी थे, वह नगर जन-धन से सम्पन्न और भगवान चन्द्रप्रभ के विशाल जिनमंदिर से अलंकृत था। कवि की धर्मपत्नी गुरुभक्ता और गुण ग्राहिणी थी। आपके दो पुत्र थे, धर्मदास और गोविन्ददास । इनमें धर्मदास बहुत ही सुयोग्य और गृह भार वहन करने वाला था, उसकी बुद्धि जैनधर्म में विशेष रस लेती थी । कवि देव-शास्त्र-गुरु के भक्त और विद्याविनोदी थे, उनका विद्वानों से विशेष प्रेम था, वे संगीत शास्त्र, छन्द, अलंकार आदि में निपुण थे, और कविता करने में उन्हें विशेष आनन्द प्राता था।
कवि की दूसरी कृति 'महापुराण कलिका' है। जिसमें २७ संधियां हैं, जिनमें वेसठ शलाका महापुरुषों की गौरव-गाथा का चित्रण किया गया है । ग्रंथ के अन्त में एक महत्वपूर्ण प्रशस्ति दी है, जिससे कवि के वंश आदि का परिचय मिल जाता है । कवि ने इस ग्रंथ को हिन्दी भाषा में लिखा है और जिसका रचनाकाल वि० संवत् १६५० है । इससे कवि १७वीं शताब्दी के प्रतिभा सम्पन्न विद्वान जान पड़ते हैं।
१०४वीं प्रशस्ति 'मल्लिणाहकव्व' की है जिसके कर्ता कवि जयमित्रहल हैं । इसका परिचय २६वीं प्रशस्ति के साथ दिया गया है।
. १०५वीं प्रशस्ति ‘जिरणरत्ति विहाणकहा' की है, जिसके कर्ता कवि नरसेन हैं। जिसका परिचय ६६वीं प्रशस्ति के साथ दिया गया है।
१०६वीं प्रशस्ति सम्यक्त्व कौमुदी की है जिसके कर्ता कवि रइधू हैं। इसका परिचय ३५वीं प्रशस्ति से लेकर ४९वीं प्रशस्ति के साथ दिया गया है।
__ १०७वीं प्रशस्ति 'जोगसार' की है। जिसके कर्ता कवि श्रुतकीर्ति हैं। इसका परिचय ८५-८६ प्रशस्तियों के साथ दिया गया है।
१०८वीं और १०६वीं प्रशस्तियां क्रमशः सुगंध दसमी कथा और मउडसत्तमी कहारास की हैं, जिनके कर्ता कवि भगवतीदास हैं । और जिनका परिचय ८८वीं प्रशस्ति के साथ दिया गया है।
१. श्रीमत्प्रभाचन्द्र गणी-द्र पट्टे भट्टारक श्रीमुनिचन्द्रकीतिः :
संस्नापितो योऽवनिनाथवृन्दैः सम्मेदनाम्नीह गिरीन्द्रमूनि ॥-मूलसंघ पट्टावली जैन सि०भा० १ कि०३-४ २. कल्याणं कीर्तिल्लोके जसु भवति जगे मंडलाचार्य पट्टे, नंद्याम्नाये सुगच्छे सुभगश्रुतमते भारती कारमूर्ते। मान्यो श्री मूलसंघे प्रभवतु भुवने सार सौख्याधिकारी, सोऽयं में वैश्यवंशे ठकुर गुरुयते कीर्तिनामा विशालो। -महापुराण कलिका संधि २३ १. कवि ने अपने को स्वयं त्रेसठ शलाका पुरुषों की पुराण कथा को कहने वाला लिखा है और जिसका परिचय अनेकान्त वर्ष १३ किरण ७-८ में दिया गया है । जैसा कि उसके निम्न पद्य से प्रकट है।
या जन्माभवछेद निर्णयकरी, या ब्रह्मब्रह्मेश्वरी। या संसार विभावभावनपरा या धर्मकामापुरी॥ प्रज्ञानादथ ध्वंसिनी शुभकरी, ज्ञेया सदा पावनी, या तेसट्रिपुराण उत्तम कथा भव्या सदा पातु नः॥
या मण्या सदा पातु नः।- महापुराण कलिका २. विशेष परिचय के लिये देखिये अनेकान्त वर्ष १३ कि. ७-८