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जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह
छी थे, जो बड़े धर्मनिष्ठ और श्रावक की ११ प्रतिमाओं का पालन करते थे। वहीं पर लोकमित्र पण्डित खेता थे, उनके प्रसिद्ध पूत्र कामराय थे। कामराय की पत्नी का नाम कमलश्री था, उससे तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे। जिनका नाम जिनदास रयणु प्रौब दिउपाल (देवपाल ) था । उसने वहां वर्धमान का एक चैत्यालय भी बनवाया था, जो उत्तुंग ध्वजाओं से अलंकृत था और जिसमें वर्धमान तीर्थंकर की प्रशांत मूर्ति विराजमान थी और उसी देवपाल ने उक्त चरित्र ग्रंथ लिखवाया था ।
afa ने ग्रन्थ की प्रथम सन्धि के हवें कडवक में जिनसेन, अकलंक, गुरणभद्र, गृद्धपिच्छ, पोढिल्ल (प्रोष्ठिल्ल), लक्ष्मरण, श्रीधर और चउमुह (चतुर्मुख) नाम के विद्वानों का उल्लेख किया है ।
कवि-परिचय
कवि ने अपना परिचय निम्नप्रकार व्यक्त किया है— मेरुपुर में मेरुकीर्ति, करमसिंह राजा के घर में हुए, जो पद्मवती पुरवाड वंश में उत्पन्न हुए थे । कवि के पिता का नाम सेठ दिल्हरण था और माता का नाम राजमती था । यद्यपि कवि ने अपनी गुरुपरम्परा का कोई उल्लेख नहीं किया । किन्तु ग्रंथकर्ता ने अपना यह ग्रन्थ वि० सं० १५०५ मैं कार्तिकी पूर्णिमा के दिन बनाकर समाप्त किया था। उसी संवत् की लिखी हुई एक प्रति भोगांव के शास्त्र भण्डार से बाबू कामताप्रसाद जी अलीगंज को प्राप्त हुई है', जो उनके पास सुरक्षित है । अन्य प्रतियां जयपुर के शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध हैं। एक अपूर्ण प्रति मेरे पास भी है ।
०वीं प्रशस्ति से लेकर हवीं प्रशस्ति तक प्रशस्तियां क्रमशः निम्न ग्रन्थों की हैं जिनके नाम 'कोइलपंचमी कहा' मउडसत्तमी कहा, रविवयकहा, तियालचउवीसीकहा, कुसुमंजलि कहा, निसि सत्तमी वयकहा, णिज्झरपंचमी कहा, और प्रणुपेहा हैं। जिनके कर्ता ब्रह्म साधारण हैं । इन कथानों में जैन सिद्धान्त के अनुसार व्रतों का विधान और उनके फल का विवेचन किया गया है। साथ ही व्रतों के श्राचरण का क्रम और तिथि आदि के उल्लेखों के साथ उद्यापन की विधि को भी संक्षिप्त में दिया हुआ है। अंतिम ग्रंथ अनुप्रेक्षा में अनित्यादि द्वादश भावनाओं के स्वरूप का दिग्दर्शन कराते हुए संसार और देह-भोगों की असारता का उल्लेख करते हुए आत्मा को वैराग्य की ओर आकृष्ट करने का प्रयत्न किया गया है ।
ब्रह्म साधारण ने अपनी गुरु परम्परा का तो उल्लेख किया है, किन्तु अपना कोई परिचय नहीं दिया, और न रचना - काल का समय ही दिया है । कुन्दकुन्दगरणी की परम्परा में रत्नकीर्ति, प्रभाचन्द्र, पद्मनंदि, हरिभूषण, नरेन्द्रकीर्ति, विद्यानंदि और ब्रह्म साधारण । ब्रह्म साधारण भ० नरेन्द्रकीर्ति के शिष्य
१. संवत् १५०५ वर्षे कार्तिक सुदी पूर्णमासी दिने श्री मूलसंधे सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे भट्टारक श्री पद्मनंदिदेव तत्पट्टे भट्टारक श्री शुभचन्द्रदेव तस्य पट्टे भट्टारक श्री जिनचन्द्रदेव तस्याम्नाये श्री खंडेलवालान्वये सकल ग्रन्थार्थं प्रवीणः पंडित कउडि: तस्य पुत्रः सकल कलाकुशल: पण्डित छीत (र) तत्पुत्र: निरवद्य श्रावकाचारधरः पंडित जिनदास, पंडित खेता तत्पुत्र पंचाणुव्रत पालकः पण्डित कामराज तद्भार्या कमलश्री तत्पुत्रात्रयः पण्डित जिनदास, पण्डित रतम, पण्डित देवपाल एतेषां मध्ये पंडित देवपालेन इदं अजितनाथदेव चरित्रं लिखापितं निजज्ञानावरणीय कर्मक्षयार्थं शुभमस्तु लेखक पाठव योः ।
- जैन सि० भा० भा० २२ कि० २ ।