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________________ १२४ जनय प्रशस्ति संग्रह विनाश कर श्रात्मानन्द में निमग्न हो गए। जो सदाकाल निजानन्दरस में छके रहेंगे । कवि ने ग्रन्थ में चौपाई, पद्धड़िया और सोरठा आदि छन्दों का प्रयोग किया है । प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना जोयरिणपुर' (दिल्ली) निवासी अग्रवाल कुलभूषण गर्ग गोत्रीय साहु भोज - राज के ५ पुत्रों में (खीमचंद (खेमचन्द) गारण चंद ( ज्ञानचन्द ) श्रीचंद गजमल्ल और रणमल ) इनमें से द्वितीय पुत्र ज्ञानचन्द के पुत्र विद्वान साधारण श्रावक की प्रेरणा से इस ग्रन्थ की रचना की गई है। इसीसे कवि ने ग्रंथ साधारण के नामांकित किया है और ग्रन्थ की अन्तिम प्रशस्ति में साधारण के वंश का परिचय कराया गया है । उसने हस्तिनागपुर की यात्रार्थ संघ चलाया था और जिनमन्दिर का निर्माण भी कराकर उसकी प्रतिष्ठा भी करवाई थी तथा पुण्यउपार्जन किया था। भोजराज के पुत्र ज्ञानचंद्र की पत्नी का नाम 'सउराजही' था, जो अनेक गुरणों से विभूषित थी, उससे तीन पुत्र हुए थे। पहला पुत्र सारंग साहु था, जिसने सम्मेद - शिखर की यात्रा की थी । उसकी पत्नी का नाम ' तिलोकाही' था। दूसरा पुत्र साधारण था, जो बड़ा विद्वान् और गुरणी था, उसका वैभव बहुत बढ़ा चढ़ा था। उसने 'शत्रुंजय' की यात्रा की थी । उसकी स्त्री का नाम 'सीवाही था, उससे चार पुत्र हुए थे। अभयचंद्र, मल्लिदास जितमल्ल और सोहिल्ल । इनकी चारों पत्नियों के नाम क्रमशः - चंदाही, भदासही समदो और भीखरणही थे, ये चारों ही पतिव्रता और धर्मनिष्ठा थीं। इस तरह साधारण साहु ने समस्त परिवार के साथ शांतिनाथ चरित बनवाया था । कवि ने इस ग्रंथ की रचना विक्रम सं० १५८७ की कार्तिक कृष्णा पंचमी के दिन मुगल बादशाह बाबर के राज्य काल में बनाकर समाप्त किया था । कवि ने अपने से पूर्ववर्ती निम्न विद्वान कवियों का स्मरण किया है । कलंक, पूज्यपाद (देवनंदी) नेमिचंद्र सैद्धांतिक, चतुर्मुख, स्वयंभू, पुष्पदंत, यशः कीर्ति रघू, गुणभद्रसूरि, और सहरणपाल । इनमें से सहनपाल का कोई ग्रंथ अभी तक देखने में नहीं श्राया । ग्रंथकर्ता ने अपना और अपने पिता के नामोल्लेख के सिवाय अन्य कोई परिचय नहीं दिया है । किंतु काष्ठासंघ माथुरगच्छ की भट्टारकीय परम्परा का उल्लेख करते हुए लिखा है कि-काष्ठा संघ माथुरगच्छ पुष्करगण में भट्टारक यशःकीर्तिः मलयकीर्ति और उनके शिष्य गुणभद्रसूरि थे । इससे यह १. जोयणिपुर दिल्ली का नाम है। यहां ६४ योगिनियों का निवास था, और उनका मन्दिर भी बना हुआ था इस कारण इसका नाम योगिनीपुर पड़ा है। जोयणिपुर अपभ्रंश का रूप है । विशेष परिचय के लिए देखिए अनेकान्त वर्ष १३ किरण १ में 'दिल्ली के पांच नाम 'शीर्षक मेरा लेख । २. बाबर ने सन् १५२६ ईस्त्री में पानीपत की लड़ाई में दिल्ली के बादशाह इब्राहीम लोदी को पराजित प्रौर दिवंगत कर दिल्ली का राज्य शासन प्राप्त किया था, उसके बाद उसने भागरा पर भी अधिकार कर लिया था, भौर सन् १५३० (वि० सं० १५८७ ) में भागरा में ही उसकी मृत्यु हो गई थी। इसने केवल ५ वर्ष ही राज्य किया है । ३. विक्रम रायहुववगयकालइ रिसिवसु-सर- भुवि-अंकालइ । वत्तिय - पढम - पविल पंचमि दिणि, हुउ परिपुण्ण वि उग्गंत इणि । शांतिनाथ चरित प्र० ४. जोयणिपुर (दिल्ली) के उत्तर में जसुना नदी के किनारे बसी हुई काष्ठापुरी' में टांकवंश के राजा मदनपाल के श्राश्रय में पेदिभट्ट के पुत्र विश्वेश्वर ने 'मदन परिजात' नाम का निबंध १४वीं शताब्दी के मन्त समय में लिखा था । प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् म० म० प्रोभा जी के अनुसार काष्ठा नामक नगर में नागवंशियों की टाँक शाखा के राजाओं का छोटा सा राज्य था । इससे काष्ठासंघ की उत्पत्ति का स्थान दिल्ली की काष्ठापुरी ही जान पड़ती है। दूसरे काष्ठासंघ का सम्बन्ध अग्रवालों के साथ है।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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