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________________ प्रस्तावना १११ इसके अतिरिक्त करकण्डुचरिउ, सम्यक्त्व कौमुदी, श्रात्मसम्बोधकाव्य, अरणथमीकथा, पुण्गासब कथा, सिद्धांतार्थसार, दशलक्षण जयमाला और षोडशकाररण जयमाला । इन आठ ग्रन्थों में से पुण्यास्रवकथा कोष को छोड़कर शेष ग्रन्थ कहां और कब रचे गए, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता । रघू ने प्रायः अधिकांश ग्रन्थों की रचना ग्वालियर में रहकर तोमर वंश के शासक डूंगरसिंह और कीर्तिराज के समय में की है । जिनका राज्यकाल संवत् १४८१ से सं० १५३६ तक रहा है । अतएव कवि का रचनाकाल सं० १४८१ से १५३६ के मध्यवर्ती समय माना जा सकता है । मैं पहले यह बतला आया हूं कि कविवर रइधू प्रतिष्ठाचार्य थे । उन्होंने कई प्रतिष्ठाएँ कराई थीं। उनके द्वारा प्रतिष्ठित संवत् १४६७ की आदिनाथ की मूर्ति का लेख भी दिया था । यह प्रतिष्ठा उन्होंने गोपाचल दुर्ग में कराई थी, इसके सिवाय, सं० १५१० और १५२५ की प्रतिष्ठित मूर्तियों के लेख भी उपलब्ध हैं, जिनकी प्रतिष्ठा वहां इनके द्वारा सम्पन्न हुई है " सवत् १५२५ में सम्पन्न होने वाली प्रतिष्ठाएँ रइधू ने ग्वालियर के शासक कीर्तिसिंह या करणसिंह के राज्य में कराई है। जिनका राज्य संवत् १५३६ तक रहा है। कुरावली (मैनपुरी) के मूर्तिलेखों में भी, जिनका संकलन बाबू कामताप्रसादजी ने किया था । उसमें भी सं० १५०६ जेठ सुदि शुक्रवार के दिन चंद्रवाड में चौहान वंशी राजा रामचंद्र के पुत्र प्रतापसिंह के राज्यकाल में अग्रवाल वंशी साहू गजाधर और भोलाने भगवान शांतिनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई थी । अन्वेषण करने पर अन्य मूर्ति लेख भी प्राप्त हो सकते हैं। इन मूर्तिलेखों से कवि रद्दधू के जीवनकाल पर अच्छा प्रकाश पड़ता है । वे सं० १५२५ तक तो जीवित रहे ही हैं, किंतु बाद में और कितने वर्ष तक जीवित रहे, यह निश्चय करना अभी कठिन है, अन्य साधन-सामग्री मिलने पर उस पर और भी विचार किया जायगा । इस तरह कवि विक्रम की १५वीं शताब्दी के उत्तरार्धं और १६वीं शताब्दी के पूर्वार्ध विद्वान् थे । ५०वीं प्रशस्ति से लेकर क्रम से चौसठवीं प्रशस्ति तक १५ प्रशस्तियाँ व्रत-सम्बन्धी कथा-ग्रंथों की हैं । जिनके कर्ता भट्टारक गुरणभद्र हैं। उन कथा-ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं १ सवरण वारसिकहा, २ पक्खवइकहा, ३ प्रयास पंचमीकहा, ४ चंदायरणवयकहा, ५ चंदरण छुट्टी कहा, ६ दुग्धारसकहा, ७ रिणदुहसत्तमीकहा, ८ मउडसत्तमीकहा, ६ पुप्फंजलिकहा, १० रयरणत्तयकहा, ११ दहलवखरणवयकहा, १२ अरणतवयकहा, १३ लद्धिविहारणकहा, १४ सोलहकाररणवयकहा, और १५ सुगंधदहमीकहा । १. देखो, अनेकान्त वर्ष १०, किरण १०, तथा ग्वालियर गजिटियर जि० १ २. देखो, मेरी नोट कापी सं० १५२५ में प्रतिष्ठित मूर्तिलेख, ग्वालियर .. ३. सं० १५०६ जेठ सुदि शुक्रे श्रीचन्द्रपाट दुर्गे पुरे चौहान वंशे राजाधिराज श्रीरामचन्द्रदेव युवराज श्री प्रतापचन्द्रदेव राज्य वर्तमाने श्री काष्ठा संघे मथुरान्वये पुष्कर गणे श्राचार्य श्री हेमकी तिदेव तत्पट्टे भ० श्री कमलकीर्तिदेव | पं० प्राचार्य रंधू नामधेय तदम्नाये प्राग्रोतकान्वये वासिल गोत्रे साहु त्योंवर भार्या द्वौ पुत्रौ द्वौ सा० महराज नामानौ त्योंध० भार्या श्रीपा तयोः पुत्राश्वत्वारः संघा विपति गजाधर मोल्हण जलकू रातू नामान: संघाधिपतिगजे भार्या द्वे राय श्री गांगो नाम्ने संघाधिपति मोल्हण भा० सोमश्री पुत्र तोहक, संघाधिपति जलकू भार्या महाश्री तयोः पुत्री कुलचन्द्र मेघचन्द्र संघपति तू भा० प्रभया श्री साधु त्योंधर पुत्र महाराज भार्या मदनश्री पुत्री द्वौ माणिक ... भार्या शिवदे ...... संघपति जयपाल भार्या मुगापते संधाधिपति गजाधर संघा० भोला प्रमुख शान्तिनाथ बिम्बं प्रतिष्ठापितं प्रणमितं च । देखो, प्राचीन जैन लेख संग्रह, सम्पादक बा० कामताप्रसाद ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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