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जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह
जाति और गोत्रों का अधिकांश विकास अथवा निर्माण गांव, नगर और देश आदि के नामों पर से हुआ है । उदाहरण के लिए सांभर के आस-पास के बघेरा स्थान से बघेरवाल, पाली से पल्लीवाल खण्डेला से खण्डेलवाल, अग्रोहा से अग्रवाल, जायस अथवा जैसासे जैसवाल और प्रसासे प्रोसवाल जाति का निकास हुआ है। तथा चंदेरी के निवासी होने से चन्दैरिया, चन्द्रवाड से चांदुवाड या चांदवाड और पद्मावती नगरी से पद्मावतिया आदि गोत्रों एवं मूरका उदय हुआ है । इसी तरह अन्य कितनी ही जातियों के सम्बंध में प्राचीन लेखों, ताम्रपत्रों, सिक्कों, ग्रन्थ- प्रशस्तियों और ग्रंथों आदि पर से उनके इतिवृत्त का पता लगाया जा सकता है ।
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उक्त कविवर के ग्रंथों में उल्लिखित 'पोमावई' शब्द स्वयं पद्मावती नाम की नगरी का वाचक है । यह नगरी पूर्व समय में खूब समृद्ध थी, उसकी इस समृद्धि का उल्लेख खजुराहो के वि० सं० १०५२ के शिलालेख में पाया जाता है, जिसमें यह बतलाया गया है कि यह नगरी ऊँचे-ऊँचे गगनचुम्बी भवनों एवं मकानातों से सुशोभित थी, जिसके राजमार्गों में बड़े-बड़े तेज तुरङ्ग दौड़ते थे और जिसकी चमकती हुई स्वच्छ एवं शुभ्र दीवारें श्राकाश से बातें करती थीं। जैसाकि उक्त लेख के निम्न पद्यों से प्रकट है
सोधुत्तुंग पतङ्गलङ्घनपथ प्रोत्तुंगमालाकुला
शुभ्रा कषपाण्डुरोच्च शिखरप्राकारचित्रा (व) रा प्रालेयाचल शृङ्गसन्नि (नि) भशुभप्रासादसद्मावती भव्या पूर्वमभूदपूर्व रचना या नाम पद्मावती ॥
[द्ध] त,
त्वं गत्तुंगतुरंगमोदगमक्षु (खु) रक्षोदाद्रजः प्रो यस्यां जीर्न (पं) कठोर बभु (स्र) मकरो कुर्मोदराभं नमः । मत्तानेककरालकुम्भि करटप्रोत्कृष्टवृष्ट्या [द भु] वं ।
तं कर्दम मुद्रिया क्षितितलं ता ब्रू (ब्रू ) त कि संस्तुमः ॥ -Epigraphica Indica V. I. P. 149
इस समुल्लेख पर से पाठक सहज ही में पद्मावती नगरी की विशालता का अनुमान कर सकते हैं। इस नगरी को नागराजाओं की राजधानी बनने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था और पद्मावती कांतिपुरी तथा मथुरा में नौ नागराजाओं के राज्य करने का उल्लेख भी मिलता है ' ।। पद्मावती नगरी के नागराजाओं के सिक्के भी मालवे में कई जगह मिले हैं। ग्यारहवीं शताब्दी में रचित 'सरस्वती कंठाभरण' में भी पद्मावती का वर्णन है और मालती माधव में भी पद्मावती का कथन पाया जाता है जिसे लेखवृद्धि के भय से छोड़ा जाता है, परंतु खेद है कि आज यह नगरी वहां अपने उस रूप में नहीं है किन्तु ग्वालियर राज्य में उसके स्थान पर 'पवाया' नामक एक छोटा सा गांव बसा हुआ है, जो कि देहली से बम्बई जाने वाली रेलवे लाइन पर 'देवरा' नाम के स्टेशन से कुछ ही दूर पर स्थित है। यह पद्मावती नगरी ही पद्मावती जाति के निकास का कारण है । इस दृष्टि से वर्तमान 'पवाया' ग्राम पद्मावती पुरवालों के लिए विशेष महत्व की वस्तु है । भले ही वहां पर आज पद्मावती पुरवालों का निवास न हो, किन्तु उसके आस पास तो प्राज भी वहां पद्मावतीपुर वालों का निवास पाया जाता है। ऊपर के इन सब उल्लेखों पर से ग्राम नगरादिक नामों पर उपजातियों की कल्पना को पुष्टि मिलती है ।
१. नवनागा पद्मावत्यां कांतीपुर्यां मथुरायां विष्णु पु० अंश ४० २४ ॥
२. देखो, राजपूताने का इतिहास प्रथम जिल्द
पृ० २३० ।