SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना के नाम इस प्रकार हैं-१. देवनंदी (पूज्यपाद) २. रविषेण ३. चउमुह ४. द्रोण ५. स्वयंभूदेव ६. कविवर ७. वज्रसेन ८. जिनसेन ६. देवसेन १०. महाकवि पुष्पदन्त । कवि वंश-परिचय कविवर रइधू संघाधिप देवराय के पौत्र और हरिसिंघ के पुत्र थे, जो विद्वानों को आनन्ददायक थे। और माता का नाम 'विजयसिरि' (विजयश्री) था, जो रूपलावण्यादि गुणों से अलंकृत होते हुए भी शील संयमादि सद्गुणों से विभूषित थी। कविवर की जाति पद्मावती पुरवाल थी और कविवर उक्त पद्मा. वती कुलरूपी कमलों को विकसित करने वाले दिवाकर (सूर्य) थे जैसाकि 'सम्मइजिन चरिउ' ग्रंथ की प्रशस्ति के निम्न वाक्यों से प्रकट है पोमावइ कुल कमल-दिवायरु, हरिसिंघ बुहयण कुल, पाणंदणु। जस्स धरिज रइधू बुह जायउ, देव-सत्थ-गुरु-पय-अणुरायउ ॥ कविवर ने अपने कुल का परिचय 'पोमावइकुल' और पोमावइ 'पुरवाडवंस' जैसे वाक्यों द्वारा कराया है। जिससे वे पद्मावती पुरवाल नाम के कुल में समुत्पन्न हुए थे। जैनसमाज में चौरासी उपजातियों के अस्तित्व का उल्लेख मिलता है उनमें कितनी ही जातियों का अस्तित्व आज नहीं मिलता; किंतु इन चौरासी जातियों में ऐसी कितनी ही उपजातियां अथवा वंश है जो पहले कभी बहुत कुछ समृद्ध और सम्पन्न रहे हैं; किंतु आज वे उतने समृद्ध एवं वैभवशाली नहीं दीखते, और कितने ही वंश एवं जातियां प्राचीन समय में गौरवशाली रहे हैं किंतु आज उक्त संख्या में उनका उल्लेख भी शामिल नहीं है। जैसे धर्कट १ आदि। ___ इन चौरासी जातियों में पद्मावती पुरवाल भी एक उपजाति है, जो आगरा, मैनपुरी, एटा, ग्वालियर आदि स्थानों में आबाद है, इनकी जन-संख्या भी कई हजार पाई जाती है । वर्तमान में यह जाति बहुत कुछ पिछड़ी हुई है तो भी इसमें कई प्रतिष्ठित विद्वान हैं । वे आज भी समाज सेवा के कार्य में लगे हुए हैं । यद्यपि इस जाति के विद्वान् अपना उदय ब्राह्मणों से बतलाते हैं और अपने को देवनन्दी (पूज्यपाद) का सन्तानीय भी प्रकट करते हैं, परन्तु इतिहास से उनकी यह कल्पना केवल कल्पित ही जान पड़ती है। इसके दो कारण हैं। एक तो यह कि उपजातियों का इतिवृत्त अभी अंधकार में हैं जो कुछ प्रकाश में आ पाया है उसके आधार से उसका अस्तित्व विक्रम की दशमी शताब्दी से पूर्व का ज्ञात नहीं होता, हो सकता है कि वे उससे भी पूर्ववर्ती रहीं हों, परन्तु बिना किसी प्रामाणिक अनुसंधान के इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा जा सकता। पट्टावली वाला दूसरा कारण भी प्रामाणिक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि पट्टावली में प्राचार्य पूज्य पाद (देवनन्दी) को पद्मावती-पुरवाल लिखा है, परन्तु प्राचीन ऐतिहासिक प्रमाणों से उनका पद्मावतीपुरवाल होना प्रमाणित नहीं होता, कारण कि देवनन्दी ब्राह्मण कुल में समुत्पन्न हुए थे। १. यह जाति जैन समाज में गौरव-शालिनी रही है। इसमें अनेक प्रतिष्ठित श्रीसम्पन्न श्रावक और विद्वान् हुए हैं जिनकी कृतियां आज भी अपने अस्तित्व से भूतल को समलंकृत कर रही हैं। भविष्यदत्त कथा के कर्ता बुध धनपाल और धर्मपरीक्षा के कर्ता बुध हरिषेण ने भी अपने जन्म से 'धट वंश को पावन किया है। हरिषेण ने अपनी धर्मपरीक्षा वि० सं० १०४८ में बनाकर समाप्त की है। धर्कट वंश के अनुयायी दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में रहे हैं ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy