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प्रस्तावना
कवि ने इस ग्रन्थ की रचना रोहतक नगर' में की है, जहाँ के पार्श्वनाथ मंदिर में दो विद्वान निवास करते थे । उनका नाम गरवउ और जसमलु था, जो गुणों के निधान थे। उनका लघुबान्धव शांतिदास था, जो ग्रन्थ के अर्थ का जानकार था। इस चरित ग्रन्थ का निर्माण कराने वाले चौधरी देवराज थे। जिनका कुल अग्रवाल और गोत्र था सिंघल या सिंगल । और वे चौधरी पद से अलंकृत थे। उनके पिता का नाम साह महणा था। यह ग्रन्थ देवराज चौधरी की प्रेरणा से बनाया गया है, अतएव उन्हीं के नामांकित किया गया है । प्रशस्ति में देवराज के कुटुम्ब का विस्तृत परिचय दिया हुआ है।
__ कवि ने इस ग्रंथ को रचना विक्रम संवत् १५७६ की चैत्र शुक्ला पंचमी शनिवार के दिन कृतिका नक्षत्र के शुभयोग में की है। और आमेर भंडार की यह प्रति सं० १५७७ कार्तिक वदी चतुर्थी को लिपि की हुई है, जो सुनपत में लिखी गई थी।
३४ वीं ग्रन्थ प्रशस्ति-नागकुमारचरित की है, जिसमें दो सन्धियां हैं, जिनकी श्लोक संख्या ३३०० के लगभग है जिनमें नागकुमार का पावन चरित अंकित किया गया हैं। चरित वही है जिसे पुष्पदन्तादि कवियों ने लिखा है, उसमें कोई खास वैशिष्ठ्य नहीं पाया जाता । ग्रन्थ की भाषा सरल और हिन्दी के विकास को लिये हुए है। इस खण्ड काव्य के भी प्रारंभ के दो पत्र नहीं हैं, जिससे प्रति खंडित हो गई है और उससे आद्य प्रशस्ति का कुछ ऐतिहासिक भाग भी त्रुटित हो गया है। कवि ने यह ग्रंथ साहू जयसी के पुत्र साहू टोडरमल की प्रेरणा से बनाया है। साहू टोडरमल का वंश इक्ष्वाकु था और कुल जायसवाल' । वह दान-पूजा आदि धार्मिक कार्यों में संलग्न रहता था और प्रकृतितः दयालु था। अतएव वह
१. रोहतक पंजाब का एक नगर है। वर्तमान में भी उसका वही नाम है। वहां प्राज भी जैनियों की
अच्छी संख्या है। २. जायस या यादव वंश का इतिवृत्त अति प्राचीन है। परन्तु उसके सम्बन्ध में कोई अन्वेषण नहीं हुआ।
इस जाति का निकास जैसा से कहा जाता है । भले ही लोग जैसा से जैसवालों की कल्पना करें; किन्तु ग्रंथ प्रशस्तियों में इन्हें यादव वंशी लिखा मिलता है । जिससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि ये लोग यदुवंशियों की सन्तान थे। उसी यदु या यादव शब्द का अपभ्रंश रूप जादव या जायस बन गया जान पड़ता है । यदु वंश एक क्षत्रिय वंश है, यदुवंशियों का विशाल राज्य रहा है । शौरीपुर से लेकर मथुरा और उसके आस-पास के प्रदेश उनके द्वारा शामित रहे हैं । यादव वंशी जरासंध के भय से शौरीपुर को छोड़ कर वारावती (द्वारावनी या द्वारिका) में बस गए थे । जैनियों के २२वें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ और उनके चचेरे भाई श्रीकृष्ण का जन्म उसी यादव कुल में हुआ था। जायस वंश में अनेक प्रतिष्ठित और राज्य मान्य व्यक्ति हो गये हैं, जो तोमर और चौहान वंशी राजानों के राजमंत्री रहे हैं। ग्वालियर के तोमर वंशी राजा वीरसिंह के प्रधान मंत्री जायस वंशी सेठ कुशराज थे। जो राजनीति के साथ धर्मनिष्ठ और राज्य के संवर्द्धन संरक्षण की कला में कुशल थे। इन्होंने पद्मनाभ नामक कायस्थ विद्वान से, जो जैनधर्म का श्रद्धालु था, 'यशोधरचरित्र' ग्रन्थ का निर्माण कराया था। चन्द्रबाड और रपरी के चौहानवंशी राजापों के राज्य मंत्री भी जायसवाल श्रावक रहे हैं। वर्तमान में यद्यपि उनका प्रभाव क्षीण हो गया है। फिर भी मंदिर, मूर्तियों और जैनग्रन्थों के निर्माण में उनका बहुत कुछ योग रहा है । दूबकुण्ड (ग्वालियर) के भग्न मन्दिर के शिलालेख से ज्ञात होता है कि विक्रम संवत् ११४५ में कच्छप वंशी महाराज विक्रमसिंह के राज्यकाल में मुनि विजयकीर्ति के उपदेश से जमवाल वंशी पाहड़, कुकेक, सूर्पट, देवधर और महीचन्द्र प्रादि चतुर श्रावकों ने ७५० फीट लम्बे और ४०० वर्गफीट चौड़े अंडाकार क्षेत्र में इस विशाल