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जैनधर्म के तप का महत्व
एक महान साधक थे । उनके विषय में आज भी हम श्रद्धा के साथ यह पद्य
न
बोलते हैं
अंगूठे अमृतवसै लब्धितणां भंडार। __ श्री गुरु गौतम सुमरिय वांछित फलदातार । गौतम स्वामी के अंगूठे में अमृत भरा था-इसका क्या अर्थ है ? अर्थात् तपस्या के द्वारा उनके शरीर का रोम-रोम, प्रत्येक अंग रसायन बन गया था, पारस बन गया था, अमृत हो गया था। जिस वस्तु को भी उनका स्पर्श हो जाता, वह कंचन हो जाती। यह लब्धि कठोर तपःसाधना के द्वारा ही उन्हें प्राप्त हुई थी। भगवान महावीर ने गौतम गणधर की कठोर तपःसाधना का वर्णन करते हुए शास्त्रों में स्थान-स्थान पर बताया है-उग्गतवेघोरतवे-तत्ततवे, महातवे' गौतम बड़े उग्रतपस्वी घोरतपस्वी और एक अद्भुत महान तपस्वी थे। तपस्या के द्वारा उनका शरीर अग्नि में तपे स्वर्ण की भाँति, कसौटी पर खिची स्वर्ण रेखा की भाँति दमकने लग गया था। और उनका तपश्चरण दुर्धर्प तो इतना था कि साधारण मनुष्य उसकी कल्पना करने मात्र से कांप उठता था । आचार्य अभयदेव सूरि ने लिखा है-यदन्येन प्राकृत पुंसा न शक्यते चिन्तयितुमपि तद्विधेन तपसा युक्तः२ साधारण मनुष्य जिस उग्र तपश्चरण की कल्पना भी नहीं कर सकता ऐसा, उग्रतपश्चरण गौतम करते थे। इसी कठोर तपःसाधना के द्वारा उनका शरीर कंचन कहो, पारस कहो या अमृत कहो वह बन गया था। इसी तपस्या के द्वारा ही उन्हें ऐसी महान तेजोलेश्या प्राप्त हुई थी जिसके प्रभाव से थोड़ा सा भी क्रोध आने पर सोलह महाजनपदों को क्षण भर में भस्मसात् किया जा सकता था। ___ तो यह अदभुत महानता, प्रभावकता गौतम को कैसे प्राप्त हुई ? इसके उत्तर में एक ही उत्तर है कि तपस्या के द्वारा !
१ (क) भगवती सूत्र १११ (ख) औपपातिक सूत्र २ भगवती सूत्र १११। वृत्ति पृ० ३५ ३ भगवती सूत्र शतक १५