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जैन धर्म में तप
तप से चक्रवतित्व संसार में भौतिक समृद्धि की दृष्टि के चक्रवर्ती का पद सबसे श्रेष्ठ । और सवसे दुर्लभ माना गया है। वह चक्रवर्ती पद कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? तपश्चरण के द्वारा। भरत. चक्रवर्ती ने अपने पूर्व जन्मों में हजारों वर्ष तक तपस्या, सेवा और स्वाध्याय तप की आराधना की थी, उसी के प्रभाव से वे चक्रवर्ती पद प्रात कर सके । सनत्कुमार चक्रवर्ती का भी . पूर्व-जीवन आपने पढ़ा होगा ? हजारों हजार वर्ष की तपस्या करने के बाद वे चक्रवर्ती पद पर आरूढ़ हुए । चक्रवर्ती के भव में जन्म लेने पर भी वे सहसा चक्रवर्ती नहीं बन गये । हरएक भौतिक उपलब्धि, समृद्धि के लिए उन्हें तप करना पड़ता है। चक्रवर्ती के तेरह तेले जैन परम्परा में प्रसिद्ध है । समय-समय पर तेले की तपस्या करके वे अपने कार्य को सिद्ध करते हैं।
जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में बताया है कि इस अवसर्पिणी काल के प्रथम .. चक्रवर्ती भरत की आयुधशाला में जब सर्वप्रथम चक्ररत्न प्रकट हुआ, (जिसके बल पर ही वे चक्रवर्ती कहलाये) तव आयुधशाला के रक्षक ने महाराज भरत को बधाई दी ! यह शुभ संवाद सुनकर भरत प्रसन्नता में .. झूम उठे। उन्होंने वधाई लाने वाले को बहुत-सा प्रीतिदान दिया, फिर चक्ररत्न की पूजा की और पश्चात् चक्ररत्न के अधिष्ठायक देव को प्रसन्न करने के लिए पौपधशाला में जाकर तीन दिन का निर्जल तप (अट्ठमभत्तं पगिण्हइ) तेला करके मागध तीर्थ कुमार नामक देव को प्रसन्न किया।
चक्रवर्ती की भांति वासुदेव बलदेव को भी जब अपने अभीष्ट कार्य . की सिद्धि के लिए विशेष सहयोग एवं दिव्यवल की आवश्यकता होतीतव-तब उन्होंने तप करके देवताओं की उपासना की और उन्हें प्रसन्न कर . अपने कार्य में सिद्धि प्राप्त की ! ___ वासुदेव श्री कृष्ण, जो महान बलशाली, चतुर और अद्भुत पराक्रमी थे, सव यंत्र मंत्र तंत्र के मूल रहस्यों के वेत्ता थे वे भी द्रौपदी को धातकी.
१. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, ३. वक्षस्कार