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जैन धर्म मे तप
पाच इन्द्रियाँ-स्पर्शन-रसन-घ्राण-चक्षु एव श्रोत्र, और मन इनको वश मे करना, इन पर सयम रखना, इच्छाओ पर अकुश लगाना-बस इसी का नाम तप है । यही तप की सर्वमान्य परिभाषा है। ___तप का जैसा व्यापक और विस्तृत वर्णन जैन आगमो व ग्रन्थो मे किया गया है-उसके अनुशीलन से यह निश्चित ही पता चलता है कि-जैन धर्म की समस्त साधना जो आचार प्रधान और ज्ञान प्रधान है, वह सब तपोमय ही है, तप का क्षेत्र इतना व्यापक माना गया है कि स्वाध्याय, अध्ययन, सेवा, भक्ति, अनशन, प्रायश्चित्त आदि जीवन की समस्त क्रियाए ही उसके अन्तर्गत आती हैं। अगले प्रकरणो मे पृष्ठ स्वय यह बतायेंगे ।
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