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जैन धर्म मे तप भी कठिन हो गया । लेकिन बात ऐसी नही है, जैसा मैंने वताया, यह उस एक ही चन्द्रमा के विविध चित्र समझ लीजिए। एक ही पहाड के विविध दृश्य समझ लीजिए । सवका केन्द्र एक ही है, मूल एक ही है, आपको इन विविधताओ मे नही ले जाकर एक ही केन्द्र पर लाऊ तो वह है तप । तप मे यह सव मार्ग समन्वित हो जाते हैं, ज्ञान भी, भाव भी, वैराग्य भी, सेवा भी, सवका समावेश तप मे होता है ।
जैन धर्म का तप केवल शरीर को सुखा देना मात्र नहीं है, केवल उपवास आदि करना ही तप नही है, तप का क्षेत्र बहुत विशाल है, बडा ज्यापक है, ज्ञान और क्रिया-दोनो ही तप है, तप चारित्र तो हैं ही, भाव के बिना तप होगा नही, ध्यान, विनय, गुरु सेवा आदि भी तप के मुख्य अग है, जिनका वर्णन आगे किया जायेगा-इस प्रकार मोक्ष के जितने भी मार्ग आपके समक्ष वताये गये हैं, उन सवका यदि एक नाम ही रखा जाय तो वह है-तप । जैसे सर्वे पदा हस्तिपदे निमग्ना-हाथी के खोज मे सवके खोज समा जाते हैं, और सागर के आगन मे सब नदिया मिल जाती हैं, वैसे ही तप के आचरण मे मोक्ष के समस्त मार्ग समाहित हो जाते हैं। आत्मा को ज्ञानाभिमुख करने वाला भी तप है । ज्ञान प्राप्ति तभी होगी जब आप अध्ययन करेंगे, या गुरुजनो की सेवा करेंगे और ये दोनो ही तप के अग हैं, स्वाध्याय तप है, गुरुसेवा (वैयावृत्य) भी तप है। कपाय छोडना तप है, इन्द्रिय सयम तप है, कम खाना तप है, कम बोलना तप है, आसन, ध्यान करना तप है और दोपो का प्रायश्चित्त करना भी तप है। अब वताइए आत्मशुद्धि का ऐसा कौन-सा साधन है जो तप मे नही आया हो ? तप से ही आत्मा पर लगे कर्म आवरण दूर हटते हैं, तप से ही आत्मा शुद्ध होती है-सपूर्ण तप ही मुक्ति मार्ग का एकमेव साधन है, सभी साधन तप के अग है।