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परिशिष्ट ४
५६६ .(११) बहिःकथकप्रतिचारी-ये ग्लानमुनि के पास धर्म प्रभावना के लिए
. बाहर के लोगों को कथा सुनाते हैं। (१२) दिशासमर्थप्रतिचारी-ये ग्लानमुनि के पास छोटे बड़े आकस्मिक
उपद्रवों को शान्त करने का काम करते हैं (प्रत्येक कार्य पर ४-४ साधु नियुक्त होते हैं, अतः उत्कृष्ट स्थिति में ग्लानप्रतिचारियों की संख्या ४८ हो जाती है)।
११. पृष्ठ ४६१ पर स्वाध्याय के दूसरे भेद पृच्छना का वर्णन किया गया है। उत्तराध्ययन २६।२० में बताया है पृच्छना करने वाला अपनी शंकाओं को दूर कर ज्ञान को निर्मल बनाता है तथा कांक्षामोहनीय कर्म को खपाता है । पृच्छा- प्रश्न अनेक प्रकार के होते हैं । इस संदर्भ में स्थानांग ६।५३४ में प्रश्न छह प्रकार के बताए हैं जो विशेष ज्ञातव्य हैं
प्रश्न छः प्रकार के माने गये हैं - (१) संशयप्रश्न, (२) व्युद्ग्रहप्रश्न, (३) अनुयोगीप्रश्न (४) अनुलोमप्रश्न (५) तथाज्ञानप्रश्न, (६) अतथाज्ञान प्रश्न । (१) अर्थ विशेष में संदेह होने पर गुरु आदि से जो पूछा जाता है, वह संशय
प्रश्न है। संसार के सभी व्यक्ति संशय के पात्र हैं, केवल दो ही जीव ऐसे होते हैं, जिनके मन में शंका नहीं होती। उनमें एक तो सर्वज्ञ भगवान है, और दूसरे अभव्य जीव । संदेह होने पर अनेक देवों, मुनि-महपियों एव गृहस्थों ने भगवान् महावीर के पास जो जिज्ञासारूप प्रश्न पूछे थे, वे सव संशय प्रश्न समझने चाहिए । शंका का समाधान करने के लिए प्रश्न अवश्य पूछना चाहिए लेकिन उसके साथ द्रव्य-क्षेत्र काल भाव का ध्यान रखना
परम आवश्यक है। (२) दुराग्रह अथवा परपक्ष को दूपित करने के लिये जो प्रश्न किया जाता
है, वह व्युदग्रहप्रश्न है. । उसमें प्रश्नकर्ता की भावना प्रतिपक्षी को नीचा दिखाने की रहती है।