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बौद्ध वाङमय में 'तप'
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तपो च ब्रह्मचरियं च तं सिनानमनोदकं ।
-संयुक्तनिकाय १।११५८ तप और ब्रह्मचर्य विना पानी का स्नान है । खंति परमं तपो तितिक्खा।
-धम्मपद १४१६ क्षमा (सहिष्णुता) परम तप है। सद्धा वीजं तपो वुट्ठि ।
-सुत्तनिपात १।४।२ श्रद्धा मेरा वीज है, तप मेरी वर्षा है।
यस्सेते चतुरो धम्मा सद्धस्स घरमेसिनो । सच्चं चम्मो धिती चागो सवे पेच्च न सोचति ।।
-सुत्तनिपात १।१०।८ जिस श्रद्धाशील गृहस्य में सत्य, धर्म. धृति और त्याग (तप) ये चार धर्म हैं, उसे परलोक में पछताना नहीं पड़ता।
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