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परिशिष्ट २
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न केवल विद्या से और न केवल तप से पवित्रता प्राप्त होती है । जिसमें
विद्या और तप दोनों ही हों, वही पात्र
कहलाता है ।
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सम्मानात् तपसः क्षयः ।
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सम्मान से तप का क्षय हो जाता है ।
- आपस्तम्ब स्मृति १०६
वेदस्योपनिषत् सत्यं, सत्यस्योपनिषद् दमः । दानस्योपनिषत् तपः ।
दमस्योपनिषद् दानं,
- महाभारत शान्ति पर्व २५१।११ इन्द्रियों का संयम, संयम
वेद का सार है सत्य वचन, सत्य का सार है का सार है दान, और दान का सार है 'तपस्या' ।
तपो हि परमं श्र ेयः सम्मोहमितरत्सुखम् ।
- वाल्मीकि रामायण ७१८४/६ तप ही परम कल्याणकारी है । तप से भिन्न सुख तो मात्र बुद्धि के सम्मोह
को उत्पन्न करने वाला है ।
तपसैव महोग्रेण यद् दुरापं तदाप्यते ।
- योगवाशिष्ठ ३१६८१४
जो दुष्प्राप्य वस्तुएं हैं, वे उग्रतपस्या से ही प्राप्त होती हैं ।
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ध्यानयोगरतो भिक्षुः प्राप्नोति परमां गतिम् ।
ध्यान योग में लीन मुनि मोक्षपद को प्राप्त करता
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- शंखस्मृति
ओमित्येव ध्यायथ ! आत्मानं स्वस्ति वः ।
पाराय
तमसः
परास्तात ।
- मुण्डकोपनिषद् शशा
इस आत्मा का ध्यान ॐ के रूप में करो ! तुम्हारा कल्याण होगा अन्धकार दूर करने का यह एक ही साधन है ।