________________
५३८
२५
२६
२७
बलं थामं च पेहाए, सद्धामारोग्गमप्पणी | वित्त कालं च विन्नाय, तहप्पाणं निजु जए ॥
दशवेकालिक ८३५
अपना बल, हड़ता, श्रद्धा आरोग्य तथा क्षेत्रकाल को देखकर आत्मा को
तपश्चर्या में लगाना चाहिये ।
तवस्स मुलं घिती ।
पीवर्ग ।
जैन धर्म मे तप
-
तप का मूल धृति अर्थात् धेयं है । यत्र तपः तत्र नियमात्संयमः ।
यत्र संयमः तत्रापि नियमात् तपः ।
-निशीय चूर्णि ३३३२ जहाँ तप है वहां नियम से संयम है, और जहां संयम है वहाँ नियम से
तप है ।
तप के प्रकार :
२८
-
-निशीथ चूति ४
सो तो दुविहो बुत्तो, बाहिरभिंतरी तहा । बाहिरो छव्विहो वुत्तो, एव मग्भितं तवो ॥
- उत्तराध्ययन सुम ३०१६
आदि
।
२६
तो प्रकार का है- बाह्य और आभ्यन्तर । बाह्य तप छः प्रकार का है एवं अन्यन्तर तप के प्रायश्चित्त आदि छ: अणनण मूणोयरिया, भिक्वायरिया य रसपरिच्चाओ । कायकिलेसी, संवीणया य को तवो होई ॥ पायन्ति विणओ, वैयावच्च तहेच सभाओ । **rvi घ विस एस अभिंतरी तवो ॥
-उत्तरायन देश-१
बाल व के मेदवारी एस ५६ और प्रतिमा के मे १-१३६