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. जैन धर्म में तप
एक बात यह भी ध्यान देने की है कि जैन तपःसाधना का मार्ग हठयोग का मार्ग नहीं है। तन-मन के साथ किसी प्रकार का बलात्कार यहां नहीं किया जाता। किन्तु मन को धीरे-धीरे प्रवुद्ध किया जाता है, जागृत किया जाता है और तन को साधा जाता है। पहले मन को, फिर तन को साधने का मतलब है-मन की प्रसन्नता बनाए रखकर ही साधक तन को तपस्या .. में झोंकता है और तन, तप करते हुए भी मन प्रसन्न और आनन्दमग्न बना रहता है । इसी क्रम से साधक अपनी तपःसाधना करके शरीर की ममता से सर्वथा दूर हट कर तवेण परिसुज्सइ-तप के द्वारा संपूर्ण शुद्धता, निर्मलता एवं उज्ज्वलता प्राप्त कर लेता है।