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________________ ५१८ जन धम मतप. . है-संयम साधना में आवश्यक मर्यादानुसार रखे गये वस्त्र, पात्र आदि, साधनों का । साधक को वस्य की आवश्यकता रहती है,पान आदि अन्य वस्तुगों. की भी। उनके रखने की मर्यादा शास्त्र में बताई गई है । उस मर्यादा से उपरांत तो रखना ही नहीं चाहिए, किन्तु यह भी जरूरी नहीं है कि जितनी मर्यादा है उतने वस्त्र-पान रखना ही चाहिए। उनमें से भी कमी करते जाना, कम से कम पात्र तथा अन्य वस्तुएं रखकर शरीर का संकोन करना चाहिए, सुविधा का संकोच करना चाहिए। साधु के सामने आदर्श है-अप्पोयहि उयगरणजाए अल्पउपधि और अल्पउपकरण रखकर अपनी जीवन चर्या चलाए।. साधक के लिए भगवती सूत्र में कहा है-लाघवियं पसत्यं लघुता, हल्कापन, प्रशस्त है । अल्प उपकरण, अल्प उपघि रखना-द्रव्य लघुता है, वास हल्का पन है और यह संयमी साधक के लिए आवश्यक है। उपधि व्युत्सर्ग में साधा तीन वस्त्रों में से एक वस्त्र का परित्याग करे, फिर दो वस्त्र का परित्याग कर सिर्फ एक ही बस्न में सर्दी गर्मी विताए तथा समय आने पर उस पर वस्य का भी परित्याग कर अचेल अवस्था प्राप्त करे-इसी प्रकार अन्य उपकरणों का भी त्याग करते हुए स्वयं को संयम की कसोटी पर कसता जाए, परीपहीं से जूझता रहे। ४ मतपान व्युत्सर्ग-योजन पानी का परित्याग करना । इसमें अनगन और अनोदरी दोनों तपों की साधना समाविष्ट है। क्रमशः आहार का माग करते हुए समय पर संपूर्ण आहार का त्याग कर देना---यह भक्तपान पारस की साधना है। इनका विस्तृत वर्णन अनशन एवं अनोदरी तप में fiml गया है पाठक यहा देखें। .. माय पुस भाव गुरसग समान भेद बताये गए हैं- . .. १ कपापम्युसर्गार काय .. पोष, मान, माया और लोग इन शीरना, धीरे-धीरे उन को छोड़ने का प्राल करता या न है। मा पार पाना बोलने UR-Mai ....
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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