________________
ध्यान तप.
४८९
साथ रक्त वर्ण की ज्वाला को भी कल्पना से देखना चाहिए और वह ज्वाला प्रचंड होती हुई ऊपर लिखे हुए आठ कर्मों को जलाने लगे और कमल के मध्य को छेदकर ऊपर मस्तक तक पहुंच जाए ऐसी कल्पना करें। फिर सोचेज्वाला की एक रेखा वायीं और तथा दूसरी दाहिनी और निकल रही है, दोनों रेखाए नीचे आकर मिल जाती है और एक अग्निमय रेखा बनती - उस आकृति से शरीर के बाहर तीन कोष वाला अग्नि मंडल बन रहा है- ऐसी कल्पना करते जाए । उस अग्निमंडल में तीव्र ज्वालाए उठती हुई देखें, उनमें आठों कर्म भस्म हो रहे हैं, तथा वे जलकर राख बन गये हैं आत्मा तेज रूप में दमक रहा है, इस प्रकार की कल्पना करें।
अग्नि धारणा में सर्वत्र जो प्रकाश फैला है, उसमें स्वयं का ही प्रतिविम्ब देखा जाता है । उपनिपदों के अनुसार अग्नि धारणा सिद्ध होने पर योगी का शरीर यदि धधकती ज्वाला में भी डाल दिया जाय तो वह जलता नहीं है ।' विशेष कल्पना के लिए चित्र संख्या २ पर ध्यान देवें ।
३ वायवीधारणा-अग्नि धारणा में कर्मों को भस्म कर राख बने हुए देखने के बाद पवन धारणा की कल्पना की जाती है । पवन की कल्पना के साथ मन को जोड़ा जाता है-योगी सोचता है,खूब जोर की हवाएं चल रही हैं, उसमें आठ कर्मों की राख उड़ रही है, नीचे हृदय कमल सफेद सा उज्ज्वल हो गया है और आत्मा पर लगी राख सब हवा के झोंके से साफ हो रही है। वैदिक आचार्यों के अनुसार इस धारण में समस्त ब्रह्मांड को वायु से प्रकम्पित होता हुआ देखा जाता है और प्रभंजन का प्रेरक मैं ही हूं इस प्रकार पवन धारणा में आत्मा को बांध दिया जाता है। वायवी धारणा सिद्ध होने पर योगी आकाश में उड़ सकता है। वायु रहित स्थान में भी जीवित रह सकता है । उमे बुढ़ापा नहीं आता । स्पष्ट जानकारी के लिए देखिए चिम संख्या ३ ।
४ वारुणी धारणा- अर्थात् जल की कल्पना के साथ मन को जोड़ना। वायवी धारणा से आगे बढ़कर योगी सोचता है, आकान में मेयों का समूह .
१ ध्यान और मनोबल (डा० इन्द्र चन्द्र) पृ० १४१