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जैन धर्म में तप
है | दुखी व्यक्ति जब अपना दुःख दूर होता नहीं देखता है, दूसरों की सहानुभूति और सहयोग की जगह अपमान एवं प्रताड़ना पाता है तो वह प्रायः आक्रामक हो जाता है । हिन्दी में कहावत है - भीगी बिल्ली खम्भा नोंचेअर्थात् असहाय व्यक्ति, हारा हुआ आदमी किसी अन्य रूप में अपना रोप प्रकट करता है, उस रोष व जोश में दीनता की जगह क्रूरता व हिंसक आक्र मण की भावनाएं भड़क उठती हैं—यही आक्रामक भावना जब तक भावना में रहती है, चिन्तन में रहती है तब तक वह रौद्र व्यान होता है, और जब आचरण में आ जाती है तो व्यक्ति को रोद्र आचरण वाला बना देती है । रौद्र ध्यान की उत्पत्ति जिन चार कारणों से होती है उनका वर्णन करते हुए शास्त्र में कहा गया है
१ हिसाणुबंधी - हिसानुबंधी - किसी को मारने करने के सम्बन्ध में चिन्तन करना, गुप्त योजनाएं विचारलीन होना - हिसानुबंधी रौद्र ध्यान है ।
धोखा देने छल प्रपंच
२ मोसाणुबंधी - मृपानुबंधी - दूसरों को ठगने, करने सम्बन्धी चितन करना तथा सत्य तथ्यों का अर्थ बदलकर लोगों को गुमराह करने सम्बन्धी चितन - अर्थात् झूठ फरेब का चिन्तन मृपानुबंधी रौद्र ध्यान है ।
पीटने या हत्या आदि बनाने के लिए गहरा
३ तेयाणुबंधी - स्तेनानुबंधी चोरी, लूट खसोट आदि के उपायों व उनके साधनों पर विचार करना चोरी के नये-नये रास्ते सोचते रहना । कैसे उसको छिपाना आदि ये सब चिन्तन करना स्तेनानुबंधी रोद्र ध्यान है । ४] सारक्खणाणुबंधी - संरक्षणानुबंधी — जो धन, वैभव, पद, अधिकार प्रतिष्ठा आदि साधन एवं भोग विलास की सामग्री प्राप्त हुई है- उसके संरक्षण की चिन्ता करना - कैसे हमारा धन आदि सुरक्षित रहे, कैसे यह कुर्सी तथा अधिकार मिले तथा बने रहे इस प्रकार संरक्षण संबंधी चिन्तन करना तथा उसके मुरा-भोग में जो कोई बाधा पहुंचाए उसकी हत्या आदि करके अपने सुख व नांगों का रास्ता निष्कंटक करने सम्बन्धी जितने विचार व चिन्तन है वे इस संरक्षणानुबंधी रोव ध्यान में आ जाते है ।