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________________ विनय तप १४२३ विनय में तो ऐसी कोई बात नहीं दोसती । गुम्जनों के साथ नत्रतापूर्ण व्यवहार करना- यह तो बहुत साधारण सो बात है ! इसका उत्तर है-- विनय सिर्फ एक सद्व्यवहार का ही नाम नहीं है। विनय को सीमा यात लम्बी-चौड़ी है, इसका क्षेत्र बहुत व्यापक है। सद्व्यवहार तो विनय का एक प्रत्यक्ष फल हैं. वास्तव में तो विनय का अर्थ बहुत गहरा है। यश-प्रतिष्ठा की भावना पर संगम करना, अहंकार पर विजय करना, स्पेच्छाचारिता का दमन गार, मन को निरंकुशता को समाप्त करना एवं गुरुजनों को साक्षा- व इंगित के अनुसार वर्मन करना- यह राव विनाम है, पिन की परिभाषा में इन सब ना समावेश हो जाता है ! इस प्रकार विनय ए कठोर मनीनुशागत अर्थात् आत्मानुशासन है। आत्म-संगम पा अगास किये बिना विनर को आराधना नहीं हो सकती। जगे कि आगमों में विनय के भेद-प्रभेद या हैं उनको समान में यह बात स्पष्ट हो जायेगी, हिदिनम माग गद् पाहार का नाम नहीं है, किन्तु वह एक दुलंग आरिमत गुण, नि . प्राप्ति के लिए गंयम, अनुशासन एवं सरलता सी मापना हारनी रहती है मीष्टि में बिना को ताक यान दिया गया और ओर पानी माना गया है। दिनयतीन तर 'free , TRA की सारी, मासा आदि न . 4 . निकासा है। नुमोको कारा
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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