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जैन धर्म में तप
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इस प्रकार विविक्ताशयनासन साधना की दो मुख्य दृष्टियां आगम में
मिलती है
१ महाचर्य की सुरक्षा
२ अभय भाव की साधना
इन्हीं दोनों दृष्टियों को बाराधना करता हुआ साधक विविक्त शयनासन प्रतिसंलीनता तप की उपासना कर सकता है। इसमें मन, वचन एवं शरीर तीनों हो योगों की, इन्द्रियों को प्रतिसंलीनता समाहित हो जाती है ।
इस प्रकार अनशन, ऊनोदरी, भिक्षाचरी ( वृतिसंक्षेप) रसपरित्याग, कामवलेश और प्रतिसंलीनता - यह छह वाह्य तप का वर्णन समाप्त होता है ।