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जैन धर्म में तम डोल द्वारा वही पानी बाहर आयेगा। मन में यदि शुभ मिनार होंगे, तो वाणी द्वारा शुभ शब्द, मधुर बोल बाहर में आयेंगे जिन्हें सुनकर श्रोता पराम होंग, यदि मन में अशुभ विचार होंगे तो वाणी में भी अभद्र शब्द, गटुप. बसन ही बाहर आयेंगे जिन्हें सुनने वाले का मन दुःखी और संतप्त हो जायेगा। इसलिए पहले मन प्रतिसं लीनता बताई गई है, फिर वचन प्रति संलीनता।
अशुभ यवन योग वचन प्रतिसलीनता में सर्वप्रथम अशुभ बचन विकल्प का निरोध मारना होता है। शास्त्र में भापा के चार भेद बताये हैं सत्य, असा, मिथ और व्यवहार । इन में असत्य और मिश्र दो प्रकार की भाषा अशुभ है । असत्य भापा एक प्रकार का जहर है। किन्तु मिश्र गापा भी राय और अगत्य का गेल होने को जहर ही है । दूध शक्ति और पुष्टि देने वाला होता है, किन्तु यदि जसमें जहर मिल गया हो तो वही दूध प्राण नाशक भी हो जाता। इसीप्रकार गित सत्य भाषा में असत्य मा योटा सा मिश्रण हो गया हो, या गला भाषा भी जहर मिले दूध की तरह लाग्यो । प्रमिद अंग्रे विद्वान मकालिन का मन है --"आधा सत्य अपसर महान होता है।" पूर्ण झूठ से भी मिश्रित अधिक पतरनाक होती है । इसलिए अगस्य एवं मित्र माया आम नाथा मानी गई।
जराम पचन पलक्षण सत्य की नरम मास की परिमाया भी बनीमा पार: या गो माग बोरगा नया को RE THE बालीको नाम सर में गाना गा होग-TE जोमा दुध --- अनं मामाद अपने ति मुसाया' भनी मारतो मा नदीमामा माना frga मन को मार Prinam नहाना Trir
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